Monday, January 26, 2009

आग छुओ मत

अतीत की घटनाओं ने एकाएक झकझोरा. मन बेचैन हुआ और खो गया विश्व के पटल पर बदलते परिद्रश्य में, कहीं कोलाहल है तो कहीं उथल-पुथल, कहीं हिंसा का तांडव है तो कहीं विप्लव कि आंधी, तो कहीं आग. इन सबके बीच "वसुधैव कुटुम्बकम" की परिकल्पना गले नहीं उतरती है. विश्व बंधुत्व की बात कपोल कल्पना प्रतीत होती है.
आग तो आग है, इसमें तपिस है, जलन है और और सब कुछ स्वः कर देने की शक्ति है. इससे दूर रहा जाये तो बेहतर है.
संसार के झंझावातों के बीच जीते हुए भी जो व्यक्ति मन की शांति को अक्षुणण रख सके, वाही सच्छा और कर्मठ व्यक्ति है. 
श्री नन्द किशोर 'सजल' जी द्वारा रचित पुस्तक की पंक्तियाँ उनकी अभिव्यक्ति किसी की मन को छू सके, जनमानस को मानव कल्याण का सन्देश दे सके तो कवी का प्रयास सार्थक होगा. 

कंकरीले सपने

मन तुम्हारी वेदना - संवेदा के साथ है,
किन्तु तुमने जिदगी छोर ही झुठला दिये हैं।

टूटने कह क्या नियति है
कौन इसको कह सका है,
किन्तु संयम तोड़ने का
सहज साहस हो चुका है,

मन तुम्हारी चेतना - प्रति चेतना के साथ है,
किन्तु तुमने जिदगीे पोर ही झुठला दिये हैं।

जो सहन तुमको ही है,
वह मुझे तुमने सहाया,
धार जो निकली नहीं थी
दृगों से तुमने बहाया,

मन तुम्हारी प्रेरणा - अनुप्रेरणा के साथ है,
किन्तु तुमने जिदगी भोर ही झुठला दिये हैं।

यह नहीं सोचा की गोया
हृय को तुम ही छलोगी,
नेह नयनों में कभी तुम
स्वन्प कंकरील भरोगे,

मन तुम्हारी धारणा - अवधारणा के साथ है,
किन्तु तुमने जिदगी कोर ही झुठला दिये हैं।

खुशियों के पीछे

कुछ भाव हमारी ख्ुशियों के
यो सहज नही मिलने देते।
आगतुक हेाते हैं लेकिन
धर्मों पाखण्डों के स्वामी

कितने कितने सघर्ष हुये
अपने ही घर को पाने में
जाने कितने सुख रूठ गये
अपना ही ध्वज फहराने में,

कुछ घाव हमारी खुशियों के
संवेदन होते हैं। लेकिन,
अक्सर छल छन्दों के स्वामी
यों सहज नही सिलने देते।

अपने आँँगन की क्यारी में
हर पौध हरी दिखलाती है,
सच है यह पूरे भारत का
सुखमय भविष्य बताती है,

कुछ चाव हमारी खुशियों के
परिचायक होते हैं लेकिन,
झूठे आदर्शाें के स्वामी
यों सहज नहीं लिखने देते।

खुशियों के रक्षक बलिदानी
जीवन कुद याद दिलाते हैं।
एकता, प्रेम, संयम, गौरव का
सब रहस्य समझाते हैं,

कुछ ताव हमारी खुशियों के
संवाहक होते हैं लेकिन,
कोरे सन्दर्भों के स्वामी
यों सहज नहीं हिलने देते।

शियाकत हो तो

कभी शिकायत करना हो तो
हमसे ही कर लिया करो।

दुनिया है इसमें लोगों के
हाव भाव कुछ ठीक नहीं हैं,
इसमें अपने दिखने वालों
के भी करम सटीक नहीं हैं।

कभी हिदायत करना हो तो
हमसे ही कर लिया करो।
यहाँ दृष्टि मेरी कहती है
वे भी हंसी उड़ाते होगें,
मेरे और तुम्हारे भेदों
को सुन बहुत जुड़ते होगें।

कभी रियायत करना हो तो
हमसे ही कर लिया करो।

बन्धु हमारे निराधार ही
हठ में तुम इतने जकड़े क्यों,
मेरी निन्दा करने वालों
को इतना पोड़े पकडे क्यों।

कभी हिमायत करना हो तो
हमसे ही कर लिया करो।

कथानक रक्त के

चाहिए कुछ भी नहीं हमको
प्राप्ति के वातायानों से,
किन्तु ऐसा भी न हो
हम नित छले जाते रहें।

सहन की है यातनायें
समय ने इतनी दया की,
मौन रहकर सह गया सब
आपने इतनी दया की।

अब न हमको चाहिए दुख
यह की सुख की नव पहेली,
किन्तु ऐसा भी न हो गुण
निगुण के गीत गाते रहे।

सभ्यताओं की धरोहर
मान मर्यादा संजोये,
जो दिया स्वीकार था सब
आज तक किंचित न सोये,

अब न हमको दीजियेगा
प्यार की थाती कहीं की,
किन्तु ऐसा भी हो
हम घृणा ही पाते रहें।

समय की चाल मानो
दे तुम्हे विस्वास जाना,
व्यर्थ पुष्पन पल्लवन की
स्हज तुमसे आस माना,

कर लिया षड़यंत्र जितना
हो सका तुमसे अभी तक,
किन्तु अब ऐसा न हो
कि हम धैर्य खो आते रहें।

समय का शुभ चक्र
अबकी बार अपने हाथ होगा,
तुम न नम अगर तो
नभ हमारे साथ होगा।

कान्ति की लिखकर कहानी
फिर तुम्ही से पुछ लुँगा,
कल कहीं ऐसा न हो
हम आप पर छाते रहें।

अगर तुम चाहो अभी भी
हम तुम्हारे संग होगंे,
न्याय में संतुप्त पर
अप्याय में बदरंग होगें।

अब न हम पर थोपियेगा
रक्त की कोई कथानक,
कल कहीं ऐसा न हो
सब टूटते नाते रहें

कामना

माँ तु भाव नदी की धारा।
संचारी भावों की वाहक
दया, क्षमा, करूणा, वत्सलता
तेरे ही नेहिल अंशों पर
यह सारा जग-जीवन पलता
तू ही है अवजम्ब हमारा
माँ तु भाव नदी की धारा।
जीवन में गति देने वाली
प्रेम राग स्वर की मतवाली
पल - छिन कर्म सिखती धारा
भव बन्धन हर लेने वाली,
तू ही शोख सके अंगारा
माँ तु भाव नदी की धारा।
तुझसे उऋण न हो आये
माँ तु मन्द मन्द मुस्काये,
डगमग, डगमग करती नैया
तु हौले से पार लगाये,
तट मिलने तक रही सहारा
माँ तु भाव नदी की धारा।
तेरी धार हरे दुख सारे
तपे, धरा आकाश पुकारे,
मंगल कर मंगल कर देवी
क्षम्य बना अपराध हमारे,
मन तेरा संगीत सितारा।
माँ तु भाव नदी की धारा।
घिरे प्रलय के घने मनमाने
सब हैं तुझको पहचाने,
ध्वंस निशाना साध रहा है
तुझको सारे वार बचाने,
तेरा ही नव जीवन की धारा
माँ तु भाव नदी की धारा।

फिर चाहोगे हरियाली तुम

तुम मुकुट चाहते भारत का
कैसे मन में आया विचार
आवाजें बंद करो अपनी
भारत प्राणों का कण्ठहार

कह सको तो भारत माँ बोलो
इसके चरणो की धूल गहो,
मत रोकों हिमगिरि के प्रपात
भारत माँ की जय जयति कहो,
मनमानी हुँकारे छोड़ो
इनको कब तक सह पायेंगें
कल चाहोगे सुरसरि धारा
उसको कैसे दे पायेगें,
माँ का दूध लजाकर हम,
सह लेगें कैसे सदाचार
भारत प्राणों का कण्ठहार

पंजाब तमिल उत्तर प्रदेश
केरल कर्नाटक में प्रवेश,
सतलज यमुना सरयू झेलम
कृष्णा कावेरी के प्रदेश,
फिर चाहोगे मधुर यादगार
शुभ तालमहल के दरवाजे,
कल आशा लता मुकेश रफी
की चाहोगे तुम आवाजें,
सौगन्ध माँ के चरणों की
तुमको कर देगें निराधार
भारत प्राणों का कण्ठहार।

फिर चाहोगे बसन्त दे दें
झूले दे दें कजरी दे दें,
दें अवध तुम्हे वृन्दावन दें
मोहन माखन, गगरी दे दें,
दीवाली दे फागुन दे दें
गाती कोयल काली दे दें,
हिमगिरि कैलास ऋचायें दें,
मधुवन मयुर माली दे दें,
मत देखो सरवर कमल खिले
संयत मन से क लो विचार।
भारत प्राणों का कण्ठहार

यह तिरंगा

यह तिरंगा
यह तिरंगा हमारा सहारा,
लाल हम धरती के दुलारे।

गीत गाते हुये मुस्कराते
शान में शीश इसकी चढ़ाते,
धर्म भी है यही कर्म भी है
है मनुजता भरा राग न्यारा,
लाल हम धरती के दुलारे।

यह वतन एक शिक्षा सदन है
शान्ति का पाठ ही पाठ्यक्रम है,
नेह करूणा क्षमा से भरे मन
बिम्ब इसका चमकता सितारा,
लाल हम धरती के दुलारे।

आइये इस धरा को सजायें
हम सभी को गले से लगायें
शान इसकी सही मान इसका
हम बहायें यहाँ प्रीति धारा
लाल हम धरती के दुलारे।

शीश नवाता चल

सुख की रजनी दुख की रातें
कुछ भी हों पर तु गाता चल,
जननी को शीश नवाता चल।

आराधन कर वर दान न ले
इस जीवन में अभिमान न ले,
होता चल नीलाम्बर जैसा
खारे सागर अभिमान न ले,

क्या हुआ अगर कुछ हाथ नहीं
चरणों की धूल उठाता चल।
जननी को शीश नवाता चल।

मत तोड़ हृदय अनुरागी मन
त्यागी हों वैरानी मन,
लेता चल अपने साथ पथिक
बेचारे या बड़भागी मन,

क्या हुआ अकेला जो निकला
मन से मन को समझाता चल।
जननी को शीश नवाता चल।

अम्बर बन तो झुक धरती पर
बादल बन तो रूक परती पर,
संवेदनशील हृदय पाकर
न्योछावर हो जा जगती पर,

सूरज जैसी सात्रा के हित,
संध्या के दीप जगाता चल।
जननी को शीश नवाता चल।

इस जग का तु अपमान न कर
किंचित कोई सम्मान न हर,
सब नियम नियति के चलने दे
इनसे कोई व्यापार न कर,

संसार तने तो ना रहे
अपने को स्वयं लचाता चल।
जननी को शीश नवाता चल।

नित नये नये संघान रचा
मानवता को हरहाल बचा,
ललकारे मर्यादा कोई
तो फिर ताकत की तु धूम मचा,

पहले मत छेड़ किसी को तू
मस्ती में बीन बजाता चल।
जननी को शीश नवाता चल।

लाज न जाने देगें माँ

जय जयति तिरंगे भारत जय
हम आँच न आने देगें माँ,
अपने जीते जी आँचल की
हम लाज न जाने देगें माँ

चाहे बर्फीली चोटी हो,
या तपते मरू पर चलना हो,
चाहे कितनी कठिनाई की
राहों के बीच गुजरना हो,
चाहे अम्बर तक उड़े प्राण
या फिर घाटी में रमना हो,
चाहे सागर की गर्जन में
हमको सौ बार उतरना हो,

भय रहित पताका फहरा कर
अरि नाच न आने दे माँ
अपने जीते जी भारत की
आवाज न जाने देगें माँ।

माँ चन्दन है तेरी माटी
यह चन्दन देह ज्वाल देगी,
जो गले मिलेगा प्यार लिये
उसको अभिषेक भाल देगी,
यदि कहीं भूमि से कपट हुआ
शत्रुवत उतार खाल लेगी,
अपनी लपटों में झुलसाकर
उसको विकराल काल देगी,

मय रहित प्रीतिमय जननी है
यह साँच न जाने देगें माँ,
अपने जीते जी कश्मीरी
सरताज न जाने देगें माँ।

धैर्य की परीक्षा

धवल हूँ मै
और मेरी साधना यह तिरंगा
धैर्य की मत लो परीक्षा।
क्या जरूरत है कि बम फूटें
मभी हथियार भागे
और भारत की अभी सोयी
हुई ललकार जागे,

पटल हूँ मै
दृष्टि का इसमें वेष दंगा
शौर्य की इसमें बदली समीक्षा
आग है, अंगार है, ज्वालामुखी
जैसे कथानक,
पास वे ब्रम्हास्त्र भी हैं जो
भयानक से भयानक,

सुतल हूँ मै
प्रकृति का इस पर तुम्हारा द्वैष दंगा
तूर्य की कर लो प्रतिक्षा।
चाहते हो तुम न जाने क्या
धरा की वादियों से,
दूर ही जाना ही पड़ेगा, दम्भ
लेकर घाटियों से,

अनल हूँ मै
चाहता हूँ विश्व लेकिन भला चंगा
सूर्य की समझो तितीक्षा।

घुसपैठ

देखो यह घुसपैठ तुम्हारी
हितकर नहीं दिखायी देती।

मेरे सपने मेरी धरती
मेरे अम्बर को मत छेड़ो
मेरा जीवन मेरी शैली
इससे मत सौभाग्य खदेड़ो,

देखो यह धुन ऐंठ तुम्हारी
शुभकर नहीं दिखायी देती।

यदि तुम सीमायें तोड़ोगे
मै भी मानक क्यों मानूँगा,
स्वाभिमान की रक्षा में मै
अपने संसाधन तानूँगा,
देखो सहज अने तुम्हारी
प्रियकर नहीं दिखायी देती।

और प्रतिक्षा कर सकता हूँ
लेकिन सजल नयन से आओ,
और नही ंतो विवश करूँगा
कम से कम वापस तो जाओ,

देखो भाषा ठेठ तुम्हारी
रूचिकर नहीं दिखायी देती।

तुम जैसा चाहा

धूप - छाँव के खेल छोड़कर
आओं, आकर गले मिलो,
प्यार चाहिये प्यार मिलेगा, वैसे तुम जैसा चाहो।

मन हृदय और वाणी लोचन
हैं दोनो ओर बराबर ही,
नयनों की कोरों में धारें
हैं दोनो ओर बराबर ही,
दबे - पाँव हाल छोड़कर
आओ, बनकर कमल खिलो,
यार चाहिये यार मिलेगा, वैसे तुम जैसा चाहो।
यह दुनिया जीवित है भय पर
लेकिन ऐसे नही डराओ,
छिपे पाँव भाव छोड़कर
आओ, सारे घाव सिलो,
तार चाहिये तार मिलेगा, वैसे तुम जैसा चाहो।

तुमसे ज्यादा बम - तोपे हैं
तुमसे अधिक आग रखते हैं,
तुमसे अधिक धैर्य भी तो है
जिसके मजे बहुत चखते हैं,
दम्भी - गाँव स्वभाव छोड़कर
आओ, मेरे हृदय ह्मिलो,
हार चाहिये हार मिलेगा, वैसे तुम जैसा चाहो।

और अगर फिर युद्ध चाहिये
तो बोलो वह कैसा हो,
भूतल - शिखर गगनचुम्बी
या महाप्रलय के जैसा हो,
अग्रि ठाँव को अगर छोड़कर
कहीं दिया फिर खून विलो,
वार चाहिये वार मिलेगा,
वैसे तुम जैसा चाहो।
नकली सुरज नकली तारे
लाखों दिखायी देगें,
नकली स्वर्गगायें होगीं
मानव परछायीं होंगे,
तेवर ताव छोड़कर सारे
जाओ, अधिक नहीं मचलों,
दुश्मन सा व्यवहार मिलेगा,
वैसे जैसा तुम चाहो।

आग छुओ मत

लक्ष्मण रेखा ंिखची हुई है
मेरे प्यारे,
आग छुओ मत।
सम्भव है फिर इधर उधर से
तुम पर कोई तीर चलायें,
सात समन्दर की दूरी से
फिर रावण आज लगाये,

प्रत्यंचा फिर खिंची हुई है
जीवन धारे,
नाग छुओ मत।

वरूण और यम जूझ न जायें
हाहाकार थमे सागर का
विध्वंसों की आतुरता में
रूठे स्वर नटवर नागर का,
भौंह इधर भी खिंची हुई है
नयन सहारे,
राग छुओ मत।

लूट न पाओगे अमृत तुम
मदिरा भी तो साथ न देगी,
कल्प वृक्ष की अमर सदायें
लक्ष्मी भी तो हाथ न देगी,

माथे बिंदिया सजी हुई है
धर्म सहारे,
भाग छुओ मत।

मेरे प्यारे,
आग छुओ मत

छोटी छोटी आग

रोजी रोटी मांग रही थी
जनता को उपहार दे दिया,
सैनिक सीमा पार दे दिया।

माँ बच्चे बहनें दारायें
राह दिखाती ध्रुव तारों की,
उधर सितारे चले गये हैं
भूख मिटाने अंगारों की,

बोटी बोटी जाँच रही थी
एक अनोखा प्यार दिया,
सीमा को विस्तार दे दिया।

ध्यान हटाकर पीठ पेट से
सीमा पर आँखे रखवा दी,
और सांझ तक सबके आगे
सौ दो सौ लाशें रखवा दी,

छोटी छोटी आग रही थी
उसको एक करार दे दिया,
घर घर जाकर तार दे दिया।
कैसे हैं कठोर किस कैसे
पत्थर भी पानी से घिसते,
कौन रसायन के भोगी ये
कभी न इनके जीवन रिसते,

एक लंगोटी चाह रही थी
सम्मानित कर हार दे दिया,
चादर भर आभार दे दिया।

बहुत हो चुका

घोषित करके युद्ध करो तो
सोच नहीं बलिदानों का,
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

बर बार अगवानी करना
छुश्मन का दुखदायी है,
छशकों से यह सहते सहते
आँख रक्त भर लायी है,
जबरन छेड़छाड़ करने की
मंशा एक ढ़िठाई है,
लगता है सैतानी छाया
पाप घड़ा भर लायी है,

सह न सकोगे वार तुम
भृकुटी खिंची कमानों का
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

बलिदानों से नहीं डरा है
यह इतिहास गवाही है,
डर डर के हथियार मंगाना
सौदा नहीं उगाही है,
रोटी रोटी के टुकड़ों की
भारी मची तबाही है,
खुली हवा में साँसे लेना
जनता बीच तबाही है,
ऐसे में क्यों छेड़ रहा है
गला घोट अरमानों का
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

पहले जाकर अपने घर में
बच्चों को खाना तो दे,
चूँ चूँ करती चिड़ियों की
चोचों में कुछ दाना तो दे,
पीछे छोड़ सभी सीमायें
संयम पैमाना तो दे,
अगर लड़ेगा भारत से
फिर उसका हरजाना तो दे,

पता नहीं हरजाना क्या हो
सीमा रहित निशानों का,
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

एक नहीं दो तीन नहीं
हम लाखों शीश चढ़ा देगें,
भारत माता के सपूत हम
माँ की शान बढ़ा देगें,
फिर से इधर निगाह उठी तो
खींची खाल मढ़ा लेगें,
शान्ति कता के प्रतीक हम,
तुमको पाठ पढ़ा देगें
पता ढूँढ़ते रह जाओगे
तुम परमाणु ठिकानों का,
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

कोई कदम साथ चलने के
आदी नहीं रहे हो तुम,
इसकी उसकी चाटुकारिता का
ही स्वाद गहे हो तुम
एक बार की कौन कहे
सच दो दो बार ढहे हो तुम,
किसी दुसरे के कहने से

अन्तिम बार बहे हो तुम,
इसके बाद मानचित्रों में
भारत नये वितानों का,
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।
मेरी सीमाओं से पीछे
मीलों - मील दूर रहना,
जो भी तुमको घुड़क रहे हों,
उनकी धौ वहीं से सहना,
अगर सही दिल से रहना है
तो फिर दिल्ली से कहना,
फिर भी भारत के माथे से
पाँवों तलक दूर रहना,

रंजिश नहीं प्यार से हारा
भारत है सम्मानों का,
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

तुम्हें भूल है वे आयेंगे
ओर तुम्हारी से लड़ने,
जिनसे भारत नहीं बोलता
वे क्यों आयेंगे भिड़ने,
प्यार भरी यात्रायेंद दी तो
और लगे हो तुम चिढ़ने
इसलिये लगता चींटी के
हैं लगे अब चंख कढ़ने,

क्रूर न बन तु अपने घर में
सेवक बन संन्तानों का,
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

फिर से समझाता हुँ तुझको
यदि मन शुद्ध नहीं होगा
जब तक तुम संकल्प न लोगे
‘संयम क्रुद्ध नहीं होगा’,
आगे तुम्हे बताने वाला
कोई बुद्ध नहीं होगा
अगर तीसरा युद्ध हुआ
तो फिर से युद्ध नहीं होगा,

अम्बर विस्मित हो देखेगा
सागर बल जलयानों का
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

सपने एटम बम के

भाषण में परमाणु बमों का
कुछ प्रयोग सस्ता होगा,
उतने दिन तुम और बहक लो
जब तक मेरी आँखें नम।

भारत का दर्शन कहता है
जिओ और जिने भी दो,
हित शिखरों से झरने वाला
नीर पियो और पीने भी दो,
दया क्षमा और करूणा के प्रेरक
हुये घाव सिने भी दो,
यदि कोई मर्यादा लाघें
सिर काटो सीने भी दो,

थोड़ा पढ़ा अभी आगे तो
कठिन परीक्षा देनी है,
थोड़े पल और तुम चहक लो
और बता लो अपनी दम,

सारा भारत सोच रहा है
मानवता रोयेगी क्या ?
जिद्दी दुश्मन नहीं मानता
माँ करूणा खोयेगी क्या ?
एक दुष्ट के कारण सारी
जनता दुख ढोयेगी क्या ?
इसकी महाघिनौनी छाया
प्रलय बीज बोयेगी क्या ?

समझौते यदि नहीं चहिये
बोलो तो क्या दें तुमको ?
पल दो पल और दहक लो
फिर चढ़ कर बोलेगें हम।

कितने आँसू पी पायेगात
यह आतंक बताये भी,
कितनी विधवायें झेलेगा
थोड़ा प्यार जताये भी,
कितना हाहाकार सुनेगा
तनिक गुमान घटाये भी,
भारत माता के आँचल से
अपनी फ्रांस हटाये भी,

एटम बम बरसाने वाले
सपने भले नहीं होते,
ठन्डे दिल से अभी सोच लो
कितने सह पाओगे बम।

तपती काया

जो भू भाग मिला है तुझको
संयम से जीवन जीने का
उसमें जहर उबाल रहे क्यों,
मेरा नाम उछाल रहे क्यों ?

सहनशीलता, दया, क्षमा, सब
एक किनारे किये हुये तुम,
मेरे रखवारे नयनों पर
काले साये दिये हुये तुम,

जीवन की चलती साँसों का
आगे भी अनुकरण रहे तो
रचते व्यर्थ बवाल क्यों
मेरा नाम उछाल रहे क्यों ?

थोडे़ दिन की तपती काया
इसमें भी गोले - बारूदें,
चाह रहे हो क्या धरती पर
और हजरों सुरज कूदें,

एक प्रवाहित जलधारा से
तृप्ति घूँट लेना चाहो तो
खोद विषैल ताल क्यों
मेरा नाम उछाल रहे क्यों ?

जो भी जीवन रूठ रहे है
दर्द नहीं उनका है तुममें
नेक प्रकाश नकार रहे हो
तीर चलाते जाते तम में,

सावधान यदि रह न सको तो
आग चाहिये खुलकर बोलो,
लुक - छिप रचते जाल रहें क्यों,
मेरा नाम उछाल रहे क्यों ?

जागो तो

इधर उधर भागते फिरते हो
ले अपने हथकण्डों को,
सही समय निर्णय लेना
कब तुमको आ पायेगा ?

व्यर्थ हवाओं से इतराये
नाहक जहर उगलना क्या,
कहीं किसी के अधिकारों को
चलते राह कुचना क्या,

खाली हाथ लिये फिरते हो
दे सब कुछ सिरमुण्डो को,
संयम से शासन कर पाना
कब तुमको आ पायेगा ?

दोनों ओर लहु बहता है
जीवन और जवानों का,
दोनों ओर केतु लहराये
गर्व सहित अभिमानों का,

क्यों तुम सब पाले फिरते हो
भाड़े के कुछ गुण्ड़ों को,
देश धर्म की उन्नति करना
कब तुमको आ पायेगा ?

भारत तो समझौते का भी
प्यार भरा कुछ न्यौतों का भी,
ल्ेकिन मर्यादा के हित में
ग्राहक है वह मौतों का भी,

क्या क्या वहन किये फिरते हो
दिये सहारा दण्ड़ों को,
किसके क्या सम्बन्ध निभाना ?
कब तुमको आ पायेगा ?

चुनौती

वे समझौते क्यों मानेगें ?

धोखे का बातों को अब तक
समझौता माना क्या पाया,
दुष्टों के आश्वासन हरदम
प्राणों तक न्यौता क्या पाया

वे अपने मन का ठानेगें।
वे समझौते क्यों मानेगें ?

कलुष अहम् लादे फिरते हैं
मानवता के भक्षक सारे,
इनसे दया क्षमा - क्षमा - करूणा का
नाहक कोई नाम पुकारे,

वे बम बारूदें तानेगें
वे समझौते क्यों मानेगें ?

फिर कोई शत्रु हमारा
भारत की धरती पर आया,
स्मझो स्वर बुलन्द भारत का
परचम सेना ने लहराया,

वे युग कल्पों तक जानेगें
वे समझौते क्यों मानेगें

फ़िर दोष ना देना

मन तुम्हारे साथ सद्व्यवहार
करना जानता है।

किन्तु इसका अर्थ केवल
प्यार की भाषा समझना
छल कपट के साथ अपना
प्यार कुछ निभाता नहीं है,
श्वेत शिखरो पर प्रकृति की
धूल बारूदी उउ़ाना
प्यार में हो प्यार तो फिर
आँख को चुभता नहीं हैं

गल गया यदि हिम शिखर
जल प्रलय की ठानता है।

यह धरा सारा गगन
इसके घटक यों ही रहेंगे
व्यर्थ में तुम जिन्दगी के
साथ खेले जा रहे हो,
जल-प्रलय भूकम्प झटके
तक सहन होते नहीं हैं
और ज्वालामुखी नकली
क्यो उड़ेले जा रहे हो,

क्या तुम्हारा घर हवायें
पश्चिमी पहचानता है?
दोष फिर मढ़ते फिरोगे
साथ के सहयोगियों पर
या भारत की भूमि के
रणबाँकुरो या योगियो पर,
और इसके बाद फिर
हठ के बड़े पछताव होने
बम नहीं, हाँ गालियाँ
बरसा सकोगे ढ़ोंगियों पर,

प्यार से रहना बुरा लगता
तुम्हे जग-मानता है।

Friday, January 16, 2009

प्रेम ही प्रेम

अपने अपने ध्वज फहराओ
हर ध्वज का सम्मान करो,
आग-आग का नहीं प्रेम का
ही आदान-प्रदान करो।

किसी देश के किसी द्वीप के
तुम नायक, उन्नायक हो,
हरी-भरी चंचल दुनिया के
तुम ही सदा विधायक हो,
तुम से सारे खेल जगत के
तुम आनंद प्रदायक हो,
प्रेम-राग, जीवन-धारा के
तुम गीतों के गायक हो,

अपने-अपने बाग़ लगाओ
सब घटकों का मान करो,
आग-आग का नहीं प्रेम का
ही आदान-प्रदान करो।

रंग-जाति-धर्मों की काया
मानवता से ज्यादा क्या?
भाषा या सीमा रेखाओं
की तुम बिन मर्यादा क्या?
एक स्रष्टि की रचना सारी
महाशक्ति नर-मादा क्या?
सिर्फ़ मनुष्य बने रहना है
क्या वजीर क्या प्यादा क्या?

अपने अपने स्वप्न सजाओ
खुशियों kaa aawahan