Monday, January 26, 2009

फिर चाहोगे हरियाली तुम

तुम मुकुट चाहते भारत का
कैसे मन में आया विचार
आवाजें बंद करो अपनी
भारत प्राणों का कण्ठहार

कह सको तो भारत माँ बोलो
इसके चरणो की धूल गहो,
मत रोकों हिमगिरि के प्रपात
भारत माँ की जय जयति कहो,
मनमानी हुँकारे छोड़ो
इनको कब तक सह पायेंगें
कल चाहोगे सुरसरि धारा
उसको कैसे दे पायेगें,
माँ का दूध लजाकर हम,
सह लेगें कैसे सदाचार
भारत प्राणों का कण्ठहार

पंजाब तमिल उत्तर प्रदेश
केरल कर्नाटक में प्रवेश,
सतलज यमुना सरयू झेलम
कृष्णा कावेरी के प्रदेश,
फिर चाहोगे मधुर यादगार
शुभ तालमहल के दरवाजे,
कल आशा लता मुकेश रफी
की चाहोगे तुम आवाजें,
सौगन्ध माँ के चरणों की
तुमको कर देगें निराधार
भारत प्राणों का कण्ठहार।

फिर चाहोगे बसन्त दे दें
झूले दे दें कजरी दे दें,
दें अवध तुम्हे वृन्दावन दें
मोहन माखन, गगरी दे दें,
दीवाली दे फागुन दे दें
गाती कोयल काली दे दें,
हिमगिरि कैलास ऋचायें दें,
मधुवन मयुर माली दे दें,
मत देखो सरवर कमल खिले
संयत मन से क लो विचार।
भारत प्राणों का कण्ठहार

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