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Chand Ka Dum Nikal Gaya Hoga
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Tuesday, March 22, 2011
वन्दना
देह भी गीता की तरह है
रूप में यदि नहीं नशा हो.....
चाँद निकला है क्यों अमावस में?
वरद कर धर दिया होगा
कौन फूलों में रंग भरता है
मधुमास लिखा है
जहाँ पर प्यार होता है.....
आंसू बहे हैं कितने तुम्हारे ख्याल में
नज़ारे बात करते हैं
प्यार की बातें
दिल की खिड़की है कोई तिजोरी नहीं
मन हो गया है राधा.....
ये प्यार की खुशबू...
सुध-बुध सब भूल गये
जो भी देखे वो संत हो जाये!
वो हमसे रूठ जाते हैं
गीत
ढाई हर्फ़ कबीर के
हम तो बन्जारे हैं.....
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