जो भू भाग मिला है तुझको
संयम से जीवन जीने का
उसमें जहर उबाल रहे क्यों,
मेरा नाम उछाल रहे क्यों ?
सहनशीलता, दया, क्षमा, सब
एक किनारे किये हुये तुम,
मेरे रखवारे नयनों पर
काले साये दिये हुये तुम,
जीवन की चलती साँसों का
आगे भी अनुकरण रहे तो
रचते व्यर्थ बवाल क्यों
मेरा नाम उछाल रहे क्यों ?
थोडे़ दिन की तपती काया
इसमें भी गोले - बारूदें,
चाह रहे हो क्या धरती पर
और हजरों सुरज कूदें,
एक प्रवाहित जलधारा से
तृप्ति घूँट लेना चाहो तो
खोद विषैल ताल क्यों
मेरा नाम उछाल रहे क्यों ?
जो भी जीवन रूठ रहे है
दर्द नहीं उनका है तुममें
नेक प्रकाश नकार रहे हो
तीर चलाते जाते तम में,
सावधान यदि रह न सको तो
आग चाहिये खुलकर बोलो,
लुक - छिप रचते जाल रहें क्यों,
मेरा नाम उछाल रहे क्यों ?
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