मन तुम्हारी वेदना - संवेदा के साथ है,
किन्तु तुमने जिदगी छोर ही झुठला दिये हैं।
टूटने कह क्या नियति है
कौन इसको कह सका है,
किन्तु संयम तोड़ने का
सहज साहस हो चुका है,
मन तुम्हारी चेतना - प्रति चेतना के साथ है,
किन्तु तुमने जिदगीे पोर ही झुठला दिये हैं।
जो सहन तुमको ही है,
वह मुझे तुमने सहाया,
धार जो निकली नहीं थी
दृगों से तुमने बहाया,
मन तुम्हारी प्रेरणा - अनुप्रेरणा के साथ है,
किन्तु तुमने जिदगी भोर ही झुठला दिये हैं।
यह नहीं सोचा की गोया
हृय को तुम ही छलोगी,
नेह नयनों में कभी तुम
स्वन्प कंकरील भरोगे,
मन तुम्हारी धारणा - अवधारणा के साथ है,
किन्तु तुमने जिदगी कोर ही झुठला दिये हैं।
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