Monday, January 26, 2009

आग छुओ मत

अतीत की घटनाओं ने एकाएक झकझोरा. मन बेचैन हुआ और खो गया विश्व के पटल पर बदलते परिद्रश्य में, कहीं कोलाहल है तो कहीं उथल-पुथल, कहीं हिंसा का तांडव है तो कहीं विप्लव कि आंधी, तो कहीं आग. इन सबके बीच "वसुधैव कुटुम्बकम" की परिकल्पना गले नहीं उतरती है. विश्व बंधुत्व की बात कपोल कल्पना प्रतीत होती है.
आग तो आग है, इसमें तपिस है, जलन है और और सब कुछ स्वः कर देने की शक्ति है. इससे दूर रहा जाये तो बेहतर है.
संसार के झंझावातों के बीच जीते हुए भी जो व्यक्ति मन की शांति को अक्षुणण रख सके, वाही सच्छा और कर्मठ व्यक्ति है. 
श्री नन्द किशोर 'सजल' जी द्वारा रचित पुस्तक की पंक्तियाँ उनकी अभिव्यक्ति किसी की मन को छू सके, जनमानस को मानव कल्याण का सन्देश दे सके तो कवी का प्रयास सार्थक होगा. 

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