धवल हूँ मै
और मेरी साधना यह तिरंगा
धैर्य की मत लो परीक्षा।
क्या जरूरत है कि बम फूटें
मभी हथियार भागे
और भारत की अभी सोयी
हुई ललकार जागे,
पटल हूँ मै
दृष्टि का इसमें वेष दंगा
शौर्य की इसमें बदली समीक्षा
आग है, अंगार है, ज्वालामुखी
जैसे कथानक,
पास वे ब्रम्हास्त्र भी हैं जो
भयानक से भयानक,
सुतल हूँ मै
प्रकृति का इस पर तुम्हारा द्वैष दंगा
तूर्य की कर लो प्रतिक्षा।
चाहते हो तुम न जाने क्या
धरा की वादियों से,
दूर ही जाना ही पड़ेगा, दम्भ
लेकर घाटियों से,
अनल हूँ मै
चाहता हूँ विश्व लेकिन भला चंगा
सूर्य की समझो तितीक्षा।
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