देखो यह घुसपैठ तुम्हारी
हितकर नहीं दिखायी देती।
मेरे सपने मेरी धरती
मेरे अम्बर को मत छेड़ो
मेरा जीवन मेरी शैली
इससे मत सौभाग्य खदेड़ो,
देखो यह धुन ऐंठ तुम्हारी
शुभकर नहीं दिखायी देती।
यदि तुम सीमायें तोड़ोगे
मै भी मानक क्यों मानूँगा,
स्वाभिमान की रक्षा में मै
अपने संसाधन तानूँगा,
देखो सहज अने तुम्हारी
प्रियकर नहीं दिखायी देती।
और प्रतिक्षा कर सकता हूँ
लेकिन सजल नयन से आओ,
और नही ंतो विवश करूँगा
कम से कम वापस तो जाओ,
देखो भाषा ठेठ तुम्हारी
रूचिकर नहीं दिखायी देती।
No comments:
Post a Comment