Monday, January 26, 2009

फ़िर दोष ना देना

मन तुम्हारे साथ सद्व्यवहार
करना जानता है।

किन्तु इसका अर्थ केवल
प्यार की भाषा समझना
छल कपट के साथ अपना
प्यार कुछ निभाता नहीं है,
श्वेत शिखरो पर प्रकृति की
धूल बारूदी उउ़ाना
प्यार में हो प्यार तो फिर
आँख को चुभता नहीं हैं

गल गया यदि हिम शिखर
जल प्रलय की ठानता है।

यह धरा सारा गगन
इसके घटक यों ही रहेंगे
व्यर्थ में तुम जिन्दगी के
साथ खेले जा रहे हो,
जल-प्रलय भूकम्प झटके
तक सहन होते नहीं हैं
और ज्वालामुखी नकली
क्यो उड़ेले जा रहे हो,

क्या तुम्हारा घर हवायें
पश्चिमी पहचानता है?
दोष फिर मढ़ते फिरोगे
साथ के सहयोगियों पर
या भारत की भूमि के
रणबाँकुरो या योगियो पर,
और इसके बाद फिर
हठ के बड़े पछताव होने
बम नहीं, हाँ गालियाँ
बरसा सकोगे ढ़ोंगियों पर,

प्यार से रहना बुरा लगता
तुम्हे जग-मानता है।

No comments:

Post a Comment