Friday, January 16, 2009

प्रेम ही प्रेम

अपने अपने ध्वज फहराओ
हर ध्वज का सम्मान करो,
आग-आग का नहीं प्रेम का
ही आदान-प्रदान करो।

किसी देश के किसी द्वीप के
तुम नायक, उन्नायक हो,
हरी-भरी चंचल दुनिया के
तुम ही सदा विधायक हो,
तुम से सारे खेल जगत के
तुम आनंद प्रदायक हो,
प्रेम-राग, जीवन-धारा के
तुम गीतों के गायक हो,

अपने-अपने बाग़ लगाओ
सब घटकों का मान करो,
आग-आग का नहीं प्रेम का
ही आदान-प्रदान करो।

रंग-जाति-धर्मों की काया
मानवता से ज्यादा क्या?
भाषा या सीमा रेखाओं
की तुम बिन मर्यादा क्या?
एक स्रष्टि की रचना सारी
महाशक्ति नर-मादा क्या?
सिर्फ़ मनुष्य बने रहना है
क्या वजीर क्या प्यादा क्या?

अपने अपने स्वप्न सजाओ
खुशियों kaa aawahan

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