Monday, January 26, 2009

कथानक रक्त के

चाहिए कुछ भी नहीं हमको
प्राप्ति के वातायानों से,
किन्तु ऐसा भी न हो
हम नित छले जाते रहें।

सहन की है यातनायें
समय ने इतनी दया की,
मौन रहकर सह गया सब
आपने इतनी दया की।

अब न हमको चाहिए दुख
यह की सुख की नव पहेली,
किन्तु ऐसा भी न हो गुण
निगुण के गीत गाते रहे।

सभ्यताओं की धरोहर
मान मर्यादा संजोये,
जो दिया स्वीकार था सब
आज तक किंचित न सोये,

अब न हमको दीजियेगा
प्यार की थाती कहीं की,
किन्तु ऐसा भी हो
हम घृणा ही पाते रहें।

समय की चाल मानो
दे तुम्हे विस्वास जाना,
व्यर्थ पुष्पन पल्लवन की
स्हज तुमसे आस माना,

कर लिया षड़यंत्र जितना
हो सका तुमसे अभी तक,
किन्तु अब ऐसा न हो
कि हम धैर्य खो आते रहें।

समय का शुभ चक्र
अबकी बार अपने हाथ होगा,
तुम न नम अगर तो
नभ हमारे साथ होगा।

कान्ति की लिखकर कहानी
फिर तुम्ही से पुछ लुँगा,
कल कहीं ऐसा न हो
हम आप पर छाते रहें।

अगर तुम चाहो अभी भी
हम तुम्हारे संग होगंे,
न्याय में संतुप्त पर
अप्याय में बदरंग होगें।

अब न हम पर थोपियेगा
रक्त की कोई कथानक,
कल कहीं ऐसा न हो
सब टूटते नाते रहें

No comments:

Post a Comment