लक्ष्मण रेखा ंिखची हुई है
मेरे प्यारे,
आग छुओ मत।
सम्भव है फिर इधर उधर से
तुम पर कोई तीर चलायें,
सात समन्दर की दूरी से
फिर रावण आज लगाये,
प्रत्यंचा फिर खिंची हुई है
जीवन धारे,
नाग छुओ मत।
वरूण और यम जूझ न जायें
हाहाकार थमे सागर का
विध्वंसों की आतुरता में
रूठे स्वर नटवर नागर का,
भौंह इधर भी खिंची हुई है
नयन सहारे,
राग छुओ मत।
लूट न पाओगे अमृत तुम
मदिरा भी तो साथ न देगी,
कल्प वृक्ष की अमर सदायें
लक्ष्मी भी तो हाथ न देगी,
माथे बिंदिया सजी हुई है
धर्म सहारे,
भाग छुओ मत।
मेरे प्यारे,
आग छुओ मत
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