Monday, January 26, 2009

छोटी छोटी आग

रोजी रोटी मांग रही थी
जनता को उपहार दे दिया,
सैनिक सीमा पार दे दिया।

माँ बच्चे बहनें दारायें
राह दिखाती ध्रुव तारों की,
उधर सितारे चले गये हैं
भूख मिटाने अंगारों की,

बोटी बोटी जाँच रही थी
एक अनोखा प्यार दिया,
सीमा को विस्तार दे दिया।

ध्यान हटाकर पीठ पेट से
सीमा पर आँखे रखवा दी,
और सांझ तक सबके आगे
सौ दो सौ लाशें रखवा दी,

छोटी छोटी आग रही थी
उसको एक करार दे दिया,
घर घर जाकर तार दे दिया।
कैसे हैं कठोर किस कैसे
पत्थर भी पानी से घिसते,
कौन रसायन के भोगी ये
कभी न इनके जीवन रिसते,

एक लंगोटी चाह रही थी
सम्मानित कर हार दे दिया,
चादर भर आभार दे दिया।

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