Monday, January 26, 2009

बहुत हो चुका

घोषित करके युद्ध करो तो
सोच नहीं बलिदानों का,
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

बर बार अगवानी करना
छुश्मन का दुखदायी है,
छशकों से यह सहते सहते
आँख रक्त भर लायी है,
जबरन छेड़छाड़ करने की
मंशा एक ढ़िठाई है,
लगता है सैतानी छाया
पाप घड़ा भर लायी है,

सह न सकोगे वार तुम
भृकुटी खिंची कमानों का
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

बलिदानों से नहीं डरा है
यह इतिहास गवाही है,
डर डर के हथियार मंगाना
सौदा नहीं उगाही है,
रोटी रोटी के टुकड़ों की
भारी मची तबाही है,
खुली हवा में साँसे लेना
जनता बीच तबाही है,
ऐसे में क्यों छेड़ रहा है
गला घोट अरमानों का
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

पहले जाकर अपने घर में
बच्चों को खाना तो दे,
चूँ चूँ करती चिड़ियों की
चोचों में कुछ दाना तो दे,
पीछे छोड़ सभी सीमायें
संयम पैमाना तो दे,
अगर लड़ेगा भारत से
फिर उसका हरजाना तो दे,

पता नहीं हरजाना क्या हो
सीमा रहित निशानों का,
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

एक नहीं दो तीन नहीं
हम लाखों शीश चढ़ा देगें,
भारत माता के सपूत हम
माँ की शान बढ़ा देगें,
फिर से इधर निगाह उठी तो
खींची खाल मढ़ा लेगें,
शान्ति कता के प्रतीक हम,
तुमको पाठ पढ़ा देगें
पता ढूँढ़ते रह जाओगे
तुम परमाणु ठिकानों का,
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

कोई कदम साथ चलने के
आदी नहीं रहे हो तुम,
इसकी उसकी चाटुकारिता का
ही स्वाद गहे हो तुम
एक बार की कौन कहे
सच दो दो बार ढहे हो तुम,
किसी दुसरे के कहने से

अन्तिम बार बहे हो तुम,
इसके बाद मानचित्रों में
भारत नये वितानों का,
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।
मेरी सीमाओं से पीछे
मीलों - मील दूर रहना,
जो भी तुमको घुड़क रहे हों,
उनकी धौ वहीं से सहना,
अगर सही दिल से रहना है
तो फिर दिल्ली से कहना,
फिर भी भारत के माथे से
पाँवों तलक दूर रहना,

रंजिश नहीं प्यार से हारा
भारत है सम्मानों का,
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

तुम्हें भूल है वे आयेंगे
ओर तुम्हारी से लड़ने,
जिनसे भारत नहीं बोलता
वे क्यों आयेंगे भिड़ने,
प्यार भरी यात्रायेंद दी तो
और लगे हो तुम चिढ़ने
इसलिये लगता चींटी के
हैं लगे अब चंख कढ़ने,

क्रूर न बन तु अपने घर में
सेवक बन संन्तानों का,
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

फिर से समझाता हुँ तुझको
यदि मन शुद्ध नहीं होगा
जब तक तुम संकल्प न लोगे
‘संयम क्रुद्ध नहीं होगा’,
आगे तुम्हे बताने वाला
कोई बुद्ध नहीं होगा
अगर तीसरा युद्ध हुआ
तो फिर से युद्ध नहीं होगा,

अम्बर विस्मित हो देखेगा
सागर बल जलयानों का
मेरी सीमा के भीतर मत
छेड़ो रक्त जवानों का।

No comments:

Post a Comment