Monday, January 14, 2008

पशु पक्षी हम पालें

कैसे कैसे शौक हमारे, पशु-पक्षी हम पालें।
शौक सभी हैं मनभावन के, पाले शौक निराले।
श्वेत नवेला, चूहा, खरहा, सांप विविध रंग वाले।
रंग-बिरंगे पक्षी पालें, भालू पालें काले।
कैसे-कैसे शौक हमारे पशु पक्षी हम पालें।
कुत्ता, बिल्ली, बन्दर पालें, लेते जो कि निवाले।
गौ सचमुच माता है अपनी, खेती बैल सम्हाले।
बकरी, भेड़, वैद्य हैं घर की, भैंस दुग्ध को ढाले।
हाय सभी कटते मानव हित, हम कलुषित मन वाले।
कैसे-कैसे शौक हमारे पशु पक्षी हम पालें।
हाथी, घोड़ा, ऊंट, गधा है, आजीवन रखवाले।
क्रूर ह्रदय मानव इनको भी, श्रम के करें हवाले।
सहज प्रेम के वशीभूत ये, विचर रहे बिना ताले।
सबकी चाभी दाना-पानी, समय-समय हम डालें।
कैसे-कैसे शौक हमारे, पशु पक्षी हम पालें।
लोटन देता सीख पेम की, प्रणय मंत्र को गाले।
बुलबुल, मैना कहती हमसे, सच्चा प्रेमी पाले।
सुगना दूर कर रहा भ्रम, कह-राम नाम दुहरा ले।
पंछी इक दिन उड़ जाएगा, रोयेंगे घर वाले।
कैसे-कैसे शौक हमारे, पशु पक्षी हम पालें।
- सुरेन्द्र पाण्डेय 'रज्जन'

मैया, मुझे खिलौना दे दे

बहुत दिए माटी के पुतले, रंग-बिरंगे पुतले-उजले,
सीटी देकर चलने वाले, रूक-रूक चीं-चीं करने वाले।
दे इस बार गगन का चन्दा, तारों बीच सुहाना बन्दा।
दे न सके यदि पूनम-वाला, तिरछा, आधा, पौना दे दे।
मैया, मुझे खिलौना दे दे।।

नानी बहुत पुरानी बातें, कहतीं कथा, बिताती रातें,
बचपन में ही भरत सयाना, कथा, पुराणों ने भी माना।
कहीं सिंह के शावक पाटा, गिनता दांत बहुत इठलाता।
मैया, मुझे भरत से कहकर, कोई छोटा-छोटा दे दे।
मैया, मुझे खिलौना दे दे।।

कल ही तो टी० वी० पर देखा, अपने सैनिक, अपनी रेखा,
अपना देश भूमि-सीमायें, घुसपैठी ये कैसे आये?
हम अब तक क्यों चुप्पी साधे? कायर बने हथेली बाँधे।
तीन पगों में धरती नापूँ, मैया, विष्णु बौना दे दे।
मैया, मुझे खिलौना दे दे।।

जब तक संकट में आजादी, मैं न करूँगा मैया, शादी।
मैं कश्मीर जीतने जाऊँ, उरनी शाल-दुशाले लाऊं।
ख़ुशी-ख़ुशी ये मेरी बहनें, पहनेंगी कश्मीरी गहनें।
डाली दीदी की गुडिया का, पहले मैया गौना दे दे।
मैया, मुझे खिलौना दे दे।।

हाथ मिले राणा का भाला, चेतक जैसा अश्व निराला।
वीर शिवा-सा पानी हो, कर में खडग भवानी हो।
हो सुभाष बाबू-सी वर्दी, सीमा पर भी लगे ना सर्दी।
टोना-टटका-नजर बचाये, मैया, भाल ढिठौना दे दे।
मैया, मुझे खिलौना दे दे॥

- डॉ० सुर्यनारायण शुक्ल

जाने दो बाजार

मम्मा, जाने दो बाजार, हारन देती मेरी कार।
जो भी लाने हों सामान, बोलो, अच्छी सी दुकान॥
लाऊं बिस्कुट और नमकीन, आयें पापा के मेहमान।
देखो, बउवा भी तैयार, मम्मा, जाने दो बाजार॥
चारु को भी चिड़िया, बैट; लानी चुन्नू की भी हैट।
प्यारी गुड़िया की सलवार, अपने छोटू की तलवार॥
लाऊं कैसे गप्पे गोल? मम्मा, धीमे से ही बोल।
जल्दी पैसे दे दो चार, मम्मा, जाने दो बाजार॥
दादी कर देती इनकार, कैसे पूछूँ बारम्बार।
कहतीं, एक चवन्नी पाव, जब था देसी घी का भाव॥
मिठाई बनती थी पेवर, जलेबी, रसगुल्ला, घेवर।
नही महंगाई की थी मार, मम्मा जाने दो बाजार॥
बताती 'सारा नकली माल, छलावे चोरी का यों टाल।
रँगे जाते परवल, भिण्डी, न अच्छी कोई भी मण्डी।।
भले ही ऊँचे हों दुकान, मिलेंगे फीके ही पकवान।
साथ में लाला डन्डिमार, मम्मा, जाने दो बाजार॥
मेरा साथी मोटूलाल, जाने दुकानों का हाल।
मिले सामान सभी चोखा, न कोई दे पाये धोखा॥
उसी की मोटर गाड़ी है, पेट तक लंबी दाढ़ी है।
तुम्हें भी ले आऊंगा हार, मम्मा जाने दो बाजार॥
- डॉ० सुर्यनारायण शुक्ल

बच्चे तो जीवन की निधि हैं।

रूप सलोना तुतली बोली।
घूम रही बच्चों की टोली॥
कोमल, कलिका सी रस घोली।
नव उमंग भरती हमजोली॥
मन उपवन के, मधु बसंत के नेह परिधि है।
बच्चे तो जीवन की निधि हैं॥

ये बच्चे जीवन मधुबन हैं।
ये बच्चे जीवन का धन हैं॥
ये बच्चे जीवन उपवन हैं।
ये बच्चे मन स्वर सरगम हैं॥
मन के आँगन में बच्चे बहुरंग विविधि हैं।
बच्चे तो जीवन की निधि हैं॥

ये बच्चे जीवन की बाती।
ये बच्चे जीवन की थाती॥
ये बच्चे मधु सिंचित कलियाँ।
ये बच्चे जीवन की गलियाँ।
ममता के आँगन में बच्चे रत्न उदधि हैं।
बच्चे तो जीवन की निधि हैं॥
- शिव कुमार मिश्र

संकल्प नया हम ठानें

आओ बच्चों! मिलकर गायें राष्ट्र प्रेम के गाने।
मन की बगिया में छां जाये कोमल नए तराने॥

नेता वीर सुभाष बोस, आज़ादी के दीवाने।
गाँधी, नेहरू, भगत सिंह के गूंज रहे अफ़साने॥

आज़ादी की मस्ती में आजाद बने दीवाने।
इसीलिए हम वीर शहीदों के गाते हैं गाने॥

लगा तिरंगा लाल किला में फर-फर-फर फहराने।
तब मन की क्यारी के बच्चों फूल लगे मुस्काने॥

आओ बच्चों! जीवन का संकल्प नया हम ठानें।
मन की बगिया में लहरायें जीवन के अफ़साने॥

तन-मन-धन अर्पित हों जाये कभी ना हों बेगाने।
राष्ट्र प्रेम का सिंधु लगे जग जीवन में लहराने॥

आज़ादी की गरिमा को हम सब मिलकर पहिचानें।
विजय पताका लिए हाथ में यह संकल्प बखाने॥

ऊँचा रहे ललाट देश का अपना गौरव मानें।
लगें सरोवर के सरोज जन मानस में लहराने॥

- शिव कुमार मिश्र

सीखो लिखना-पढ़ना

तुम सब भारत के बालक हो सीखो लिखना-पढ़ना।
तुम भविष्य के कर्णधार हो तुम को आगे बढ़ना॥

कीर्ति बढ़े जग में स्वदेश की ऐसे काम करो।
अवगुण कभी न सीखो बच्चों सद् गुण ग्रहण करो॥
माता-पिता गुरु का आदर-प्रेम करो तुम सबसे।
विद्या भाषा पढो विविध, उच्च बनो तुम नभ से॥

रहो संगठित सदा, जाति धर्मों से मत बंधना।
नेक बनो फिर एक बनो, ये सीख ध्यान रखना।।
तुमको गाँधी बनना है, तुम को सुभाष भी।
शान्ति, क्रान्ति दोनो का तुम में हो निवास भी॥
गौतम, महावीर, नानक तुम को बनना है।
शेखर, शिवा, प्रताप तुम्हें बन गर तनना है॥
तुम्हीं भगवती, चरण, मैथिली शरण बनोगे।
दिनकर, सुमन, निराला की तुम शान बनोगे॥
प्रेमचन्द का प्रेम उगाओ इस माटी में।
लड़ना श्याम नारायण की हल्दी घाटी में॥
नेता मत होना बच्चों सैनिक बन जाना।
सदा देश की रक्षा में तुम खून बहाना॥
मेरा है आशीष कि तुम सब रवि बन जाओ।
यदि न कहीं कुछ हो पाओ तो कवि बन जाओ॥
कवि बन कर कविता में भारत के गुण गाना।
मातृ भूमि पर तुम गीतों के सुमन चढ़ाना॥
-त्रिभुवन सिंह चन्देल 'स्वच्छन्द'

जय भारत माता

भारत की धरती का यश सारा जग गाता है।
तुम सब इसके बालक ये तुम सबकी माता है।।
अन्न नीर फल फूल इसी पर तुम पाते हो।
ले कर इस पर जन्म इसी में मिल जाते हो॥
इस की समता में न स्वर्ग भी मन को भाता है।
तुम सब इसके बालक ये तुम सब की माता है॥
गंगा यमुना सरस्वती नदियाँ ये बहतीं हैं।
माँ का स्वागत गान सदा लहरें भी करती हैं॥
सागर माँ के चरण हमेशा धोता जाता है।
तुम सब इसके बालक ये तुम सबकी माता है॥
माँ के तन पर प्रकृति नए गहने पहनाती है।
सावन और बसन्त हाथ में लिए आरती है।
ऋतुओं का क्रम भी माता को शीश झुकता है॥
तुम सब इसके बालक ये तुम सबकी माता है।
हरे-भरे वन बाग बहुत पर्वत या घाटी है।
सब चन्दन की तरह अनेको रंग की माटी है॥
सभी जातियों धर्मों में यहाँ प्रेम समाता है।
तुम सब इसके बालक ये तुम सबकी माता है॥
यहाँ ज्ञान तप त्याग ऋषि मुनियों का मेला है।
ईश्वर ने भी आकर इस धरती पर खेला है॥
इसकी महिमा अमिट अमर गौरव की गाथा है।
तुम सब इसके बालक ये तुम सबकी माता है॥
भारत की धरती का यश सारा जग गाता है।
सारे जग से न्यारी अपनी भारत माता है॥

- त्रिभुवन सिंह चन्देल 'स्वच्छन्द'