तुम भविष्य के कर्णधार हो तुम को आगे बढ़ना॥
कीर्ति बढ़े जग में स्वदेश की ऐसे काम करो।
अवगुण कभी न सीखो बच्चों सद् गुण ग्रहण करो॥
माता-पिता गुरु का आदर-प्रेम करो तुम सबसे।विद्या भाषा पढो विविध, उच्च बनो तुम नभ से॥
रहो संगठित सदा, जाति धर्मों से मत बंधना।
नेक बनो फिर एक बनो, ये सीख ध्यान रखना।।
तुमको गाँधी बनना है, तुम को सुभाष भी।
शान्ति, क्रान्ति दोनो का तुम में हो निवास भी॥
गौतम, महावीर, नानक तुम को बनना है।
शेखर, शिवा, प्रताप तुम्हें बन गर तनना है॥
तुम्हीं भगवती, चरण, मैथिली शरण बनोगे।
दिनकर, सुमन, निराला की तुम शान बनोगे॥
प्रेमचन्द का प्रेम उगाओ इस माटी में।
लड़ना श्याम नारायण की हल्दी घाटी में॥
नेता मत होना बच्चों सैनिक बन जाना।
सदा देश की रक्षा में तुम खून बहाना॥
मेरा है आशीष कि तुम सब रवि बन जाओ।
यदि न कहीं कुछ हो पाओ तो कवि बन जाओ॥
कवि बन कर कविता में भारत के गुण गाना।
मातृ भूमि पर तुम गीतों के सुमन चढ़ाना॥
-त्रिभुवन सिंह चन्देल 'स्वच्छन्द'
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