भारत की धरती का यश सारा जग गाता है।
तुम सब इसके बालक ये तुम सबकी माता है।।
अन्न नीर फल फूल इसी पर तुम पाते हो।
ले कर इस पर जन्म इसी में मिल जाते हो॥
इस की समता में न स्वर्ग भी मन को भाता है।
तुम सब इसके बालक ये तुम सब की माता है॥
गंगा यमुना सरस्वती नदियाँ ये बहतीं हैं।
माँ का स्वागत गान सदा लहरें भी करती हैं॥
सागर माँ के चरण हमेशा धोता जाता है।
तुम सब इसके बालक ये तुम सबकी माता है॥
माँ के तन पर प्रकृति नए गहने पहनाती है।
सावन और बसन्त हाथ में लिए आरती है।
ऋतुओं का क्रम भी माता को शीश झुकता है॥
तुम सब इसके बालक ये तुम सबकी माता है।
हरे-भरे वन बाग बहुत पर्वत या घाटी है।
सब चन्दन की तरह अनेको रंग की माटी है॥
सभी जातियों धर्मों में यहाँ प्रेम समाता है।
तुम सब इसके बालक ये तुम सबकी माता है॥
यहाँ ज्ञान तप त्याग ऋषि मुनियों का मेला है।
ईश्वर ने भी आकर इस धरती पर खेला है॥
इसकी महिमा अमिट अमर गौरव की गाथा है।
तुम सब इसके बालक ये तुम सबकी माता है॥
भारत की धरती का यश सारा जग गाता है।
सारे जग से न्यारी अपनी भारत माता है॥
- त्रिभुवन सिंह चन्देल 'स्वच्छन्द'
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