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Tuesday, November 6, 2007
अनुक्रमणिका
चुप
रहो
कवि, तुम ऐसे ही बढ़ो!
पप्पू, तुम कितने अच्छे हो!
समस्या
अंधे और बहिरो की भीड़ में
युग-ध्वनि सुन रहा हूँ !
सत्याभिव्यक्ति
दुर्भाग्य !
फिर क्या.....?
मुँह मत खोलो
जनता, अब आती है
निवेदन
मेरा दोस्त
नेहरू : पुण्य स्मृति
मसूरी - १
मसूरी - २
वर्तमान
चिन्तन
युग-आह्वान
चोटी पर चढ़ना है
यथा स्थिति
सह रहे हैं
परामर्श
स्वामी विवेकानन्द स्मृति
ध्यातव्य
आत्मा की आवाज
युग-परिताप
परिवेश
सुधियाँ
पत्र
युग-दर्शन
विस्मय
दोस्तों की दृष्टि में
कामना
समय
पीड़ा
कहने दो
उपदेश
चलते रहो
बच्चों से
तीन कवितायें
जीवन
आत्माभिव्यक्ति
अनुभूति
ऊहापोह में
मेरी कवितायें
दुविधा
चिन्तन
उदबोधन
गन्दे बच्चों से
मेरा औजी
करो प्रायश्चित
भीड़भाड़ में
मैं गाता हूँ
बढ़ो नव सृजन !
वेग से बढ़ो
आत्मा चीखती है !
यह गंभीर प्रश्न है
पोस्टर
जीवन ... एक चिन्तन
एक मार्मिक दुर्घटना !
जन के मन दुःखी है !
नव वर्ष
1 comment:
Nityanand
February 14, 2011 at 5:40 AM
These poems are very good.
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These poems are very good.
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