जो भी लाने हों सामान, बोलो, अच्छी सी दुकान॥
लाऊं बिस्कुट और नमकीन, आयें पापा के मेहमान।
देखो, बउवा भी तैयार, मम्मा, जाने दो बाजार॥
चारु को भी चिड़िया, बैट; लानी चुन्नू की भी हैट।
प्यारी गुड़िया की सलवार, अपने छोटू की तलवार॥
लाऊं कैसे गप्पे गोल? मम्मा, धीमे से ही बोल।
जल्दी पैसे दे दो चार, मम्मा, जाने दो बाजार॥
दादी कर देती इनकार, कैसे पूछूँ बारम्बार।
कहतीं, एक चवन्नी पाव, जब था देसी घी का भाव॥
मिठाई बनती थी पेवर, जलेबी, रसगुल्ला, घेवर।
नही महंगाई की थी मार, मम्मा जाने दो बाजार॥
बताती 'सारा नकली माल, छलावे चोरी का यों टाल।
रँगे जाते परवल, भिण्डी, न अच्छी कोई भी मण्डी।।
भले ही ऊँचे हों दुकान, मिलेंगे फीके ही पकवान।
साथ में लाला डन्डिमार, मम्मा, जाने दो बाजार॥
मेरा साथी मोटूलाल, जाने दुकानों का हाल।
मिले सामान सभी चोखा, न कोई दे पाये धोखा॥
उसी की मोटर गाड़ी है, पेट तक लंबी दाढ़ी है।
तुम्हें भी ले आऊंगा हार, मम्मा जाने दो बाजार॥
- डॉ० सुर्यनारायण शुक्ल
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