Thursday, January 31, 2008

आँखें तेरी

सागर का
किनारा लगती है
जीने का
सहारा लगती है
ये आँखें तेरी
या मंदिर हैं
पावन सा ठिकाना लगती है ।

हंसती आंखों में
तनहाई
तनहा आंखों में
याद कोई
आती है जब भी
पास मेरे
खोयी - खोयी सी लगती है ।

आंखों की
चौखट पर तेरी
देखा जो
आंसू का डेरा
कोई कुछ भी कहे
पर मुझको तो
ये भीगा सावन लगती है ।

आंसू की
नन्ही बूंदो को
धीरे से छुपाया पलकों में
कोई देख ना ले
पर मुझको तो
ये बातें पुरानी लगती हैं ।

पूजा की
थाली लगती है
अमृत की
प्याली लगती है
ये आँखें तेरी
या रामायण
पढने में अच्छी लगती है ।

आंखों की
बूंदो से अक्सर
करती है जो
अभिषेक मेरा
शायद वो
मेरी कविता है
पूरी होने से डरती हैं ।

No comments:

Post a Comment