रहता जो सुदूर उत्तर में,
झिलमिल-झिलमिल होता रहता,
किन्तु न अपने पथ से डिगता,
अगणित तारों में अलबेला,
आलोकित है जिसका मेला,
सबसे जो न्यारा होता है,
वह ही ध्रुवतारा होता है।
बेटा! ध्रुव की पढ़ो जीवनी,
त्याग, तपस्या, धैर्य से सनी,
दृढ संकल्पों की राहों पर,
मंजिल को पाने को तत्पर-
रहता जिसका उत्साही-मन,
धन्य हुआ है उसका जीवन,
सारे जग को जो भाता है,
वह ध्रुवतारा हों जाता है।
- वीरेन्द्र त्रिवेदी
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