Wednesday, January 30, 2008

बिखरता स्वप्न

इस दिव्या चमन का
स्वप्न सुनहरा बिखर गया।
फिर भी कहते हैं यह
पहले से निखर गया।

सोने की चिड़िया सा
यह अद्भुत भव्य देश,
सम्पूर्ण सम्पदादिक
वैभव की खान रहा।

साधना शक्ति सभ्यता
स्त्रोत का वर दानी,
बलिदानी अमर शहीदों
की पहचान रहा।
बेबसी आज उसके आँचल
को चूम रही,
गर्दिश का मारा धुंध
सितारा लगता है।
सिरमौर रहा हो दुनिया
की जो नजरों में,
अपनी नजरों में खुद
बेचारा लगता है।

सुर-नर मुनियों का देश,
झुलसता देश आज,
माँ का उजियारा देश,
सिमटता देश आज।
ममता समरसता शान्ति
शीलता का संगम,
संत्रास वेदना युक्त
सिहरता देश आज।
इस शान्ति अहिंसा की
वासंती बगिया में,
कुछ बीज ध्वंश
का बिखर गया,
इस दिव्या चमन का
स्वप्न सुनहरा बिखर गया।
फिर भी कहते हैं यह पहले
से निखर गया।

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