Wednesday, January 30, 2008

नेता जी की उदासी

नेता जी हैं उदास
कारण, चुनाव-समय आया,
घर मातम सा छाया
न चहल-पहल न उल्लास
बालक युवा वृद्ध
सभी स्तब्ध
कुछ ठेकेदार सगे सम्बन्धी
या फिर मौका परस्त
नेता जी समाज सेवा के आदी
पक्के समाजवादी
अभी दो दिन पहले ही नेता जी ने
छठी पार्टी छोड़कर
सारे रिश्ते तोड़कर
नया दल अपनाया था
कितना उल्लास छाया था
कितना था जोश
माला फूल स्वागत, जे घोष
अब चुनाव तो टिकट कट गयी
यानी कि साख घट गयी
यह तो इस दल की मनमानी है
बिल्कुल बेमानी है
फिर क्या वही वक्तव्य छप गया पुराना
जाना पहचाना
कल तक जो पार्टी थी धर्म निरपेक्ष गरीबों की मसीहा
आज जातिवादी साम्प्रदायिक दायरे में अटक गयी है,
और अपने मूल सिद्धान्तों से भटक गयी है।
वाह! कोरी नैतिकता!
देश प्रेम साथ समाज सेवा भी एडजस्ट
मतलब स्पष्ट
जब चाहो सत्ता गहौ, जब चाहो हटि जाव
चोर-चोर मौसेरे भाई सब मिल करौ चुनाव
उई मनमानी कर चुके तुम काहे रहि जाव
जनता का धन लुटि कै तुमहू मारौ खाव
किन्तु कितने दिन!
अब शनैः शनैः बनावटी देश प्रेम
समाज सेवा का आवरण हट रहा
नासमझी नादानी भाग रही,
क्योंकि जनता अब जाग रही।

No comments:

Post a Comment