Tuesday, January 29, 2008

हे कलमकार हे कवि!

हे कलमकार हे कवि इस युग की पीर लिखो,
अब नई सदी में भारत की तकदीर लिखो।

लो एक हाथ में कलम एक में
धर लो इन अंगारों को,
कुछ दिन के खातिर मन ही मन
दफना दो चाँद सितारों को,
तुम तो समाज के हो दर्पण
तुम हो दिनमान उजालों के,
तुम कहाँ मंच पर लुढ़क रहे
हम-राज बने हो प्यालों के,
हम देख रहें हैं कुछ दिन से
हर साज तुम्हारे बदल गए,
हर दिन हर पल-पल जीने के
अन्दाज तुम्हारे बदल गए,
ये तो बतलाओ कवि! मंचो पर
पीना अब क्यों आम हुआ,
जिसने दुनिया को नाम दिया
वह कवि कैसे बदनाम हुआ,
इस तरह मंच पर कब तक
साथ निभाओगे हम प्याला के,
गाओगे कब तक गिर-गिर कर
ऐसे ही गीत निराला के,
तम का आवरण हटाने को
खोया विश्वास जगाने को
युग में प्रकाश फैलाने को दिनकर की एक लकीर लिखो,
अब नई सदी में भारत की तकदीर लिखो।

हे कवि! क्या तुम भी भटक गये
युग की इस भूलभुलैया में,
मीरा के सरगम से हटकर
आ गये हो ता-ता-थैया में,
कोई कहता है कलयुग में
फिर द्वापर आने वाला है,
कोई कहता किन्नर इस-
युग में नाच नचाने वाला है,
देखा तो मैंने भी जैसे
कुछ नक्षत्रों का योग हुआ,
द्वापर की युद्ध भूमि जैसा
इस युग में एक प्रयोग हुआ,
तो संसद भी हो जायेगी क्या
घसियारों की मण्डी अब,
क्या देश चलायेंगे इस युग में
नेता छोड़ शिखण्डी अब,
क्या लाल किले की प्राचीरों पर
इनके नाम लिखाओगे,
क्या इतिहासों के स्वर्णिम पन्नों
पर कालिख पुतवाओगे,
क्या लोग कहेंगे दुनिया के
भारत क्या इतना दीन हुआ,
नेता सुभाष का देश आज
इतना पुरुषत्व विहीन हुआ,
क्षण भर के खातिर गोरखपुर में
जैसा गौरव गान हुआ,
ऐसे प्रयोगों से मानो इस
भारत भर का अपमान हुआ,
कहते तो हैं सब जैसे युग
की वाणी मूक हुई है,
किन्तु यही मन कहता कवि या
कलमकार से चुक हुई है,
इसीलिये जागो कवि वर
अब नई सुबह के नये पृष्ठ पर कोई नजीर लिखो।
अब नई सदी में भारत की तकदीर लिखो॥

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