Tuesday, January 29, 2008

श्रमिक देवता

श्रम के हैं ये पुजारी फुटपाथ पर पलें हैं,
हक आज अपना-अपना ये मांगने चले हैं।

मेहनत के दौर में ही पैरों में पड़े छाले,
फिर भी इन्हीं घरों में हैं रोटियों के लाले।
हर जेठ की दुपहरी में पांच अध जले हैं,
हक आज अपना-अपना ये मांगने चले हैं।

हैं आसमाँ के नीचे अपना कोई नही घर,
हर राजसी महल के हैं नींव के ये पत्थर।
मेहनत है धर्म इनका ईमान में ढले हैं,
हक आज अपना-अपना ये मांगने चले हैं।

ये फूल ये चमन ये, सब बाग़ ये बगीचे,
जो भी हैं सब इन्हीं की मेहनत के नतीजे,
इनको गले लगा लो ये वक़्त के छले हैं,
हक आज अपना-अपना ये माँगने चले हैं।

धरती हो या गगन में सब एक है विधाता,
रहमो करम पे जिन्दा जो सबका अन्न दाता,
सब हैं खुदा के बन्दे फिर क्यों ये फासले हैं,
हक आज अपना-अपना ये माँगने चले हैं।

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