Thursday, January 31, 2008

गीत बन बांसुरी

गीत
बन बांसुरी
तेरे अधरो तलक
मेरे
अधरो की
प्यासी व्यथा गाएंगे
तन से
तन का मिलन
मैंने चाहा नही
मन से
मन का मिलन
फिर से दोहरायेंगे ।

फक्र करना
हमेशा
उजालो पे तुम
हम अंधेरो को
तुमसे
चुरा लायेंगे
सात फेरे तो
सम्भव नही हों सके
मीत तुझ संग
मेरे गीत
बन जायेंगे ।

कर्ज़ अम्बेर का
हम पर
भले ही रहे
मांग तेरी
सितारो से
भर जायेंगे
रोक लेना मुझे
ऐसे नाज़ुक समय
चांद को भी
सितारों संग
ले आयेंगे ।

श्रंखलायें प्रणय की
पावन ढहने लगे
स्मृतियों की लड़ियां
लगा जायेंगे
रात भर दूसरो की
व्यथाएं सुनी
रागिनी
कल सुबह की
सुना जायेंगे ।

गीत बन बांसुरी तेरे अधरों तलक
मेरे अधरो की प्यासी व्यथा गायेंगे .......

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