Thursday, January 31, 2008

करवटें

हर बार
कुछ नया दे गयी
मेरी
अनचाही करवट
कभी दर्द
तो कभी दिलासा
कभी उलझन
तो कभी उलाहना भी
दे गयी
मेरी करवट ।

कभी
बेचैन किया मुझको
तो कभी
सुकून बंकर
मेरी आंखों से बहती रही
कभी तरन्नुम
तो कभी तनहाई भी
दे गयी
मेरी करवट ।

आने वाली
ख़ुशी की दिलासा
मुझे दूर से
स्पर्श करती रही
टूटती रही
सपनो की अनवरत श्रंखलायें
कभी मंझधार
तो कभी किनारा भी
दे गयी
मेरी करवट ।

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