Wednesday, January 30, 2008

तो जलूँ मैं!

आज अन्तस में छिपे शैतान को पहले भगाओ तो जलूँ मैं।
प्यार की सदभावना मन में जगाओ तो जलूँ मैं।

आज यह संसार नश्वर जल रहा है,
घृणा का वातावरण ही पल रहा है,
पाप क्या या पुण्य क्या कहना निरर्थक,
आदमी भगवान् बनकर चल रहा है।

हो चुकी अब तक बहुत हैवानियत,
अब स्वयं इन्सान बनकर ही दिखाओ तो जलूँ मैं।

हो रही इंसानियत की ही शहादत,
घृणा की बनवाटिका ही फल रही है।
धर्म के फैले रुपहले आवरण में
आत्मा परमात्मा को छल रही है।

हो रहा है द्वंद भृष्टाचार शिष्टाचार में आहार और विहार में
अब किसी इन्सान के व्यवहार में होकर समाहित
स्वयं को चन्दन बनाओ तो जलूँ मैं।
प्यार की सदभावना मन में जगाओ तो जलूँ मैं।

खुद बने हो पाप के असली पुजारी,
क्यों मुझे ही पाप भागी कह रहे हो।
दे रहे इतिहास की मुझको गवाही
स्वयं ही जयचन्द बनकर रह रहे हो।

पाप की आराधना वह अब नही स्वीकार मुझको
अब न अंगीकार मुझको,
अब किसी अबला की चाहे अस्मिता हो
या किसी मजबूर बेबस की चिता हो,

देखकर तो मैं स्वयं घबरा गई हूँ
थक चुकी हूँ मैं अनेकों बार जल कर
आज तो पहले स्वयं जलकर दिखाओ तो जलूँ मैं।
प्यार की सदभावना मन में जगाओ तो जलूँ मैं।

कब तलक यह जुल्म की नगरी रहेगी कब तलक,
कब तलक यह जुल्म धरती भी सहेगी कब तलक,
पा गये वरदान जीवन का बचे फिर भी नही तो
जिन्दगी आख़िर तुम्हारी ही रहेगी कब तलक।

इसलिए तुम आज से अपनी दिशा को मोड़ दो
और अपनी आसुरी पायी विकृति को छोड़ दो,
जब तलक मन में छिपी हैवानियत जलती नही है,
तब तलक मुझको जलाने का इरादा छोड़ दो।

या ढ़ूँढ़कर लाओ बुलाओ ला सको यदि,
तो किसी प्रहलाद को पहले बुलाओ तो जलूँ मैं।
अब किसी प्रहलाद के हाथों जलाओ तो जलूँ मैं।
प्यार की सदभावना मन में जगाओ तो जलूँ मैं।

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