Wednesday, January 30, 2008

मुक्तक

तिलक, आजाद, बिस्मिल या भगत की रहनुमाई है।
शहीदों की चिताओं की भी लौ इसमें समाई है।
ये बापू की अमानत है सँजोकर इस तरह रखना,
ये आजादी बड़ी कुर्बानियों के बाद पायी है।

गिर रहे हालात तो हम क्या करें।
सो रहे जज्बात तो हम क्या करें।
दे रहे हो विषधरों को ही निमंत्रण,
हो रहे आघात तो हम क्या करें।

पर पीड़ा समेट कर जीना श्रेयस्कर है।
और स्वयं हँस-हँस कर जीना जीना भर है।
शर्म हया को छोड़ कहीं जज्बा मर जाये,
ऐसे जीने से तो मर जाना बेहतर है।

पानी में जो आग लगा दे, वह कविता है।
मरुस्थल में भी बाग़ लगा दे, वह कविता है।
मन की सहमी-सहमी सी कलियाँ खिल जायें,
सोते ही जज्बात जगा दे, वह कविता है।

हर दशा में दूसरों की बस तबाही चाहिये।
और अपनी एक स्वर में वाह वाही चाहिये।
हारती बाजी कहीं भी जीतना मुश्किल नहीं,
साथ में दो-चार बस झूठे गवाही चाहिये।

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