एक जानवर है ऐसा।
मेहनत करके खाना खाता,
हम कहते उसको भैंसा।।
जाड़ा, गर्मी, वर्षा में भी,
रहता सदा काम करता।
कभी जोतता है खेतों को,
या फिर ठेलों में जुतता॥
मालिक इतनी बेरहमी से,
माल लादते ठेले पर।
जिसे खींचने में पड़ जाते,
ठेले उसके कंधे पर॥
गर्मी के कारण भैंसे की,
ऐसी दुर्गति हों जाती।
मुँह से फेन उगलने लगता,
हंफनी आने लग जाती॥
पड़ी चढाई जहाँ सड़क पर,
उसका सिर चकराता है।
एक खींचता नाथ पकड़ कर,
डंडा एक जमाता है॥
यम के पास पहुँच भैंसे ने,
निज गाथा को बता दिया।
कुछ सोच-समझ यमराज ने उसको,
अपना वाहन बना लिया॥
- डॉ० लक्ष्मीशंकर बाजपेयी
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