द्वन्दमय जीवन मिला है, आमघट-सा तन मिला है,
किस तरह निर्वाह निर्भय हो? समर्थ विचार दो माँ!
उर अजर सुपुनीत कर दो, प्रेम का संगीत भर दो,
प्राण वीणा थाम लो कल्याण स्वर श्रंगार दो माँ!!
लोग जो अज्ञान पीड़ित, गुरु कृपा विरहित विमोहित,
पशु सदृश मुख रोगियों को, सभ्य शुभ उदगार दो माँ!
दो दयामयी ज्ञान का वर, सत्य की पहचान का वर
मन मुकुर में आत्म परिचय का सुचित्र संवार दो माँ!!
शरण दो, आधार दो माँ! व्यथित मन को प्यार दो माँ!!
- पुरुषोत्तम 'मधुप'
No comments:
Post a Comment