वीर बालको! बढ़े चलो॥
दुःख में भी मुख म्लान न हों,
बन्द कभी मुस्कान न हो।
भारत माँ के गौरव का-
सहन तुम्हें अपमान न हो॥
नित्य नवल उत्साह भरे
लक्ष्य-शिखर तक बढ़े चलो।
वीर बालको! बढ़े चलो॥
नव उमंग-उल्लास लिये,
विजय हेतु विश्वास लिये।
मानवता के लिये सदा
मोद-भरा मधुमास लिये॥
सुमति-स्नेह-समाज से
नव समाज को गढे चलो।
वीर बालको! बढ़े चलो॥
निज गौरव का ध्यान रहे,
सत्यपथ की पहचान रहे।
स्वाभिमान हों जीवन में,
किन्तु नही अभिमान रहे॥
अन्धकार को चीर सदा
बाल सूर्य-सम कढे चलो।
वीर बालको! बढ़े चलो॥
- भानुदत्त त्रिपाठी 'मधुरेश'
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