Friday, January 18, 2008

फल वाला

फल वाला लेकर के आया विविध फलों का ठेला।
सभी फलों में तभी भयंकर होने लगा झमेला॥

आम मटक कर बोला - मैं हूँ सभी फलों का राजा।
केला कहने लगा - अरे तू यह क्या कहता, जा-जा॥

तब तक सेब अकड़कर बोला - क्यों लड़ते हों भाई।
मेरी महिमा कभी किसी ने नहीं अभी तक पायी॥

तभी उचक कर जामुन बोला - मेरा रंग निराला।
मैं हूँ मजेदार तुम सब में, रंग भले है काला॥

नारंगी - संतरा भला यह, कब थे सहने वाले।
बोले - हरदम बड़े रसीले, हम हैं रहने वाले॥

एक साथ तब और सभी फल लगे बहुत चिल्लाने।
हम भी नहीं किसी से कम हैं, भले न कोई माने॥

फलवाला बोला - लड़िये मत, छोडो नहीं भलाई।
अपनी-अपनी जगह सभी में होती है अच्छाई॥

- भानुदत्त त्रिपाठी 'मधुरेश'

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