सभी फलों में तभी भयंकर होने लगा झमेला॥
आम मटक कर बोला - मैं हूँ सभी फलों का राजा।
केला कहने लगा - अरे तू यह क्या कहता, जा-जा॥
तब तक सेब अकड़कर बोला - क्यों लड़ते हों भाई।
मेरी महिमा कभी किसी ने नहीं अभी तक पायी॥
तभी उचक कर जामुन बोला - मेरा रंग निराला।
मैं हूँ मजेदार तुम सब में, रंग भले है काला॥
नारंगी - संतरा भला यह, कब थे सहने वाले।
बोले - हरदम बड़े रसीले, हम हैं रहने वाले॥
एक साथ तब और सभी फल लगे बहुत चिल्लाने।
हम भी नहीं किसी से कम हैं, भले न कोई माने॥
फलवाला बोला - लड़िये मत, छोडो नहीं भलाई।
अपनी-अपनी जगह सभी में होती है अच्छाई॥
- भानुदत्त त्रिपाठी 'मधुरेश'
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