सबसे पहले तुमने ही स्वीकार किया था।
रोता था जब मैं सबसे असहाय अकेला
मुझे ह्रदय से लगा तुम्हीं ने प्यार किया था।
मेरी ही सुख-सुविधाओं के लिये हमेशा
तुमने अपने सुख से भी इनकार किया था।
मेरे अनगिन अपराधों के होने पर भी
माँ! तुमने तो माफ़ मुझे हर बार किया था।
आज बड़ा होने पर ही कुछ समझा, तुमने
मुझ पर शैशव में कितना उपकार किया था।
- पुरुषोत्तम 'मधुप'
No comments:
Post a Comment