वैदिक विचार की कलम तलवार की ही,
आज भी बनी है पहचान बैसवारा में।
लेखनी की धार कमनीय बनती कहीं तो,
थाम लेती युद्ध की कमान बैसवारा में।
ममता की देवी कोई देश के लिए ही जब,
करती है पुत्र कुरबान बैसवारा में।
जाग उठता है फिर लिपटे तिरंगें में ही,
जैसे धरती का बलिदान बैसवारा में।
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