किया एक आयोजन,
इक ऊँचा सा मंच बनाकर
उस पर बैठे कविगण।
कोयल जी अध्यक्ष बनीं
कर रहा मोर संचालन,
श्रोताओं में बैठ गये
जंगल के सब पक्षीगण।
सबने अपने गीत सुनाये
आकर बारी-बारी,
आख़िर में कौए ने भी
कर ली अपनी तैय्यारी।
शुरू हुआ जैसे ही मनहर
कौवे जी का राग,
खत्म हो गया कवि सम्मेलन
और गये सब भाग।
- मदन मोहन शुक्ल 'मधुर'
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