Tuesday, January 15, 2008

मेरी गुड़िया

मम्मी! मेरी गुड़िया है।
देखो! कितनी बढ़िया है॥
चाभी भर दो चलती है।
चींचीं - चींचीँ करती है॥
मेरा मन भी हरती है।
साँझ सकारे हंसती है॥
यह कागज़ की पुडिया है। मम्मी! मेरी... ॥

रंग-बिरंगी फागुन हो।
या वर्षा में सावन हो॥
महका-महका मधुवन हो।
या वासन्ती उपवन हो॥
फिर भी कितनी सुखिया है। मम्मी! मेरी... ॥

कभी विहँसकर ब्याह रचाती।
सबके सोने पर सो जाती॥
घर-आँगन में आती जाती।
खेल-खेल में हमें बुलाती॥
कितनी सुन्दर मनबसिया है। मम्मी! मेरी... ॥

घाट-घाट का पानी पीती।
सबको देखे है वह जीती॥
धूप-छाँव में है वह जाती।
दूध-भात नित ही है खाती॥
ऐसी यह सुख-निंदिया है। मम्मी! मेरी... ।।

कभी झूलती झूले में।
कभी मल्हारें गाती है॥
कभी झूमती गीतों में।
कजरी सावन गाती है॥
यह माथे की बिंदिया है। मम्मी! मेरी... ॥

- सियाराम 'शरण' अग्निहोत्री

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