आई रेल आई रेल।
पैसेंजर हो या हो मेल॥
झक-झक करती गाड़ी आई।
शुभ संदेशा मनो लाई।।
देखो कितनी है सुखदाई।
रेल सभी के मन को भाई॥
कोयला पानी का है खेल। आई रेल... ।।
चलते-चलते सीटी देती।
सबको चौकन्ना कर देती।।
नभ में धुवां-धुवां भर देती।
पल में मथुरा-काशी सेती॥
टिकट पैसेन्जर हो या मेल। आई रेल... ॥
रात-रात यह भी जागती है।
नर-नारी का मन हरती है॥
स्टेशन पर ही रूकती है।
कभी नही यह थकती है॥
इसमे देश-विदेशी मेल। आई रेल... ॥
रेल सदा पटरी पर चलती।
सुख-दुःख, जाड़ा-गर्मी सहती॥
जाने क्या जग से है कहती।
फप-फप कर आगे ही बढ़ती॥
गाड़ी जाती सब कुछ झेल। आई रेल... ॥
- सियाराम 'शरण' अग्निहोत्री
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