चिड़िया उड़ती फर-फर-फर
मिट्ठू भइया फिर भी रोते
उन्हें न अच्छा लगता घर
कैसे उन्हें मनाऊँ?
सोच रही हूँ मैं-
क्या घोडा ले आऊँ?
या फिर मोटर करती पैं-पैं-पैं
फिर भी मुँह फूला है उनका,
आती नही कोई मुस्कान।
मैं तो बस चन्दा ही लूँगा,
पकड़ के लाओ उसके कान।
पकड़ के लाओ उसके कान।
- डॉ ० कनक लता तिवारी 'कनु'
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