Thursday, January 31, 2008

किसलिये

अर्थ की
किस चाह से
संवेदना
की भीड़ में
खुद को
ढून्ढ्ता हूँ मैं
किसलिये - किसलिये ?

जीर्ण - शीर्ण
राह पर
तिमिर से
खुद घिरा हुआ
प्रकाश
खोजता हूँ मैं
किसलिये - किसलिये ?

धर्म के
इतिहास पर
असत्य के
हर मंच पर
सत्य
बोलता हूँ मैं
किसलिये - किसलिये ?

देश के
उत्थान में
पतन की
हर एक राह को
नित्य
त्यागता हूँ मैं
किसलिये - किसलिये ?

दर्द की
अभिव्यक्ति को
कलम से
मै निकालता
और
पंक्तियों में डालता हूँ
किसलिये - किसलिये ?

अश्रुओं की धार में
क्यों कंटकों की सेज पर ?
स्नेह
ढून्ढ्ता हूँ मै
किसलिये - किसलिये ?

स्वार्थ के
किस लोभ से ?
किस
व्यथा की टीस से ?
तुझको
पूजता हूँ मै
किसलिये - किसलिये ?

दुःख - दर्द
अपना भूलकर
सुख को
सहेली मानकर
मैं चैन तेरा
खोजता हूँ
किसलिये - किसलिये ?

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