Thursday, January 31, 2008

श्रद्धांजलि

तुने तो
गरिमामय बनकर
दे दी
खुद को
मुक्तान्जलि
मैं
गंगा के तट पर बैठा
दे रहा
तुझे श्रद्धांजलि ।

अर्थहीन पुष्पों की कैसे
दूँ तुझको पुष्पांजलि ?
समझ
नही आता कि कैसे
दूँ तुझको श्रद्धांजलि ?

तेरी
करुणा के आगे
मद्धिम
मेरी करुणान्जली
तेरे
पावन चरणों में
अर्पित
मेरी दिव्यान्जली ।

राखी का हर एक बन्धन
दे रह
तुझे प्रेमान्जली
निश्छल
भावो से परिपूरित
ये मेरी भावान्जली ।

नीर भरे
नयनों से अलंकृत
तुझे
मेरी अश्रुंजली
श्रध्दा के
सुमनों से सुसज्जित
तुझे
मेरी श्रद्धांजलि ।

क्या
मधुशाला ही कष्टों से
दिला
सके मुक्तान्जली
पर
ऐसे तो अपमानित
होगी
मेरी श्रद्धांजलि ।

सदैव
धर्म का पालन कर
अधर्म
को दूंगा तिलांजलि
सच्चे मन से
तुझे समर्पित
ये
मेरी श्रद्धांजलि ।

पावन शब्दो को
कर अर्जित
बना रहा
काव्यांजली
गंगा में
कर दीप विसर्जित
बहा रहा
दीपान्जली ।

अपने
गीतो में रचकर
दूंगा
तुझको गीतांजलि
नतमस्तक
हों तुझे समर्पित
ये
मेरी कवितान्जली ।

कभी नही
सोचा था ऐसे
दूंगा
मैं श्रद्धांजलि
अश्रुओ
कि धार देता हूँ
मैं
भर - भर अंजलि ।

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