Thursday, January 31, 2008

पीड़ा

मेरे
व्यथित ह्रदय में
सागर की
उच्च हिलोरें
करुणा
लेती अंगडाई
पहुंची
नयनों से मिलने ।

दिन बैरी
मधुर मिलन का
रात आयी
ले स्वप्न सलोने
मिलकर
अतीत की यादे
पहुंची
नयनों में बसने ।

नयनों की
स्वीकृति पाकर
स्मृति ने
किया बसेरा
भर आयीं
निष्ठुर आंखें
पल भर में
जाने कैसे ?

आंखों का
खारा पनि
आता
पलकों से लड़कर
चुम्बन
करता गालो पर
गिरता
बंकर दो झरने ।

होंठों पर
आयी पीड़ा
पी जाती
मर्म कहानी
अंतस की
प्यास बुझाकर
मुंद जाती
प्यासी आंखें ।

आंखों की
सारी पीड़ा
बह जाती
बनकर पानी
रह जति
सूनी आंखें
मरुस्थल की
एक कहानी ।

मैं जागा
जब निद्रा से
सूखी थी
मेरी आंखें
थी अलसाई - सी
पलकें,
विस्मृत
थी सारी बातें ।

था खड़ा
दिवस दिनकर संग
फैलाये
अपनी बाहें
अभिनन्दन
करती किरणें
बैठी थी
बनकर राहें ।

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