चिड़ियों ने ताज दिया बसेरा।
चहक रहीं कैसी उड़-उड़कर,
गूँजी धरती, गूँजा अम्बर।
किरणें कितनी सुन्दर लगती,
हिम-कण को हैं सोना करतीं।
कलियाँ, भौरें और तितलियाँ,
महक उठी उपवन की गलियाँ।
इच्छाएँ कुछ नई-नई हैं,
आशाएं भी जगी नई हैं।
पिछले वर्ष करी जो गलती,
दुनिया रही हाथ ही मलती।
भूल सदा ही सब को खलती,
कभी न दुहरायें कह गलती।
आओ, नूतन साज सजायें,
जो कुछ बिगड़ा नया बनायें।
सब कुछ नूतन कर दिखलायें,
उन्नति के नव शिखर उठायें।
- राम स्वरुप दुबे
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