Friday, January 18, 2008

तारे

पीले-पीले फूल खिले हैं, आसमान के द्वारे!
देखो चन्दामामा लगते, सुन्दर प्यारे-प्यारे!

किसने वहाँ लगाया उपवन, और कौन है माली?
कौन सींचता पौधों को, करे कौन रखवाली?

इन फूलों को रोज सबेरे, कौन तोड़ ले जाता?
मैं तो लेटा रहता आँगन, फिर भी देख ना पाता?

फूलों की बाज़ार कहाँ है, कहाँ चढाये जाते?
पूजा स्थल इस अम्बर में, मुझको नजर न आते?

देख-देखकर जी ललचाता, फूल तोड़ मैं लाऊं?
दादा मुझे बताओ जल्दी, नभ पर कैसे जाऊँ?

हंस कर दादा बोले बेटा, तुम हो बड़े दुलारे।
ये अम्बर में फूल नहीं हैं, कहते इनको तारे।

- जयनारायण शुक्ल 'ज्ञानेश'

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