Thursday, January 31, 2008

तुम्हारा अविश्वसनीय प्रेम

अग्नि के सात फेरे
और
चुटकी भर सिन्दूर
दूर कर देगा
मुझे
तुम्हारे पास से
लेकिन !
क्या वे अनगिनत फेरे
जो
भावनाओ की दहलीज़ पर
हमने
साथ साथ लगाए
वे सब
शून्य हों जायेंगे ।

एक अजनबी के
तन का स्पर्श
और
मात्र रिवाजो की झूठी डोर
तुम्हे मेरे
मन के असंख्य स्पर्शो
और
जन्मों के बन्धन से
दूर ले जायेगी
लेकिन !
क्या नियति के आगे
घुटने टेक देगा
मेरा विश्वास ?
जो मुझे तुमसे मिल था ।

किसी का झूठा विश्वास
पाने की खातिर
झुठला दी जाएँगी
वे सभी
संकल्पित सौगंधे
टूट जाएगा विश्वास
और छिन्न - भिन्न हों जायेगी
मेरी तुमसे
सारी अभिन्नातायें
सिर्फ
मान्यताओं को निभाने की खातिर ।

जीत होगी भाग्य की
और
मेरा निश्चय हार जाएगा
टूट जाएगा भ्रम मेरा
मेरा विश्वास डोल जाएगा
स्वप्न बौने हों जायेंगे
वास्तविकता के धरातल पर
रह जायेगी
तो सिर्फ प्रतीक्षा
तुम्हारे वापस आने की ।

मंगलसूत्र के चांद मोती
खंडित कर देंगे
हमारे प्रेम सूत्र को
सुहाग रात की सेज रौंद डालेगी
हमारे बीच के विश्वास को
मंडप की वेदी
हिला देगी
प्रेम का निश्चय स्तम्भ
मगर फिर भी
महकता रहेगा मेरे अन्तस में
तुम्हारा अविश्वसनीय प्रेम ।

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