Sunday, January 20, 2008

खाली बातें!

मिलती रहती हैं झूठी सौगातें।
मन बहलाने वाली खाली बातें।

हम इस इक्कीसवीं सदी में,
जाने क्यों मजबूर हुए हैं,
क्षण में ही सारे के सारे
सपने चकना चूर हुए हैं।

दिन धुँधले हैं रंग-बिरंगी रातें।
मन बहलाने वाली खाली बातें।

दर्पण भी अब साँच न बोले,
मन का कोई भेद न खोले,
मधुवन वाली कोयलिया भी
बोले तो वह भी विष घोले,

आती जाती बे मौसम बरसातें।
मन बहलाने वाली खाली बातें।

राम-राज्य वाली नगरी में,
फटे हाल भूखी कंगाली
दिया न फूटी कौड़ी फिर भी
सारा हुआ खजाना खाली,

संसद में अन्धो की सजी जमातें।
मन बहलाने वाली खाली बातें।

घाटी अपनी माटी अपनी,
फिर भी क्यों ये मचा बवेला,
कोई अब तक समझ न पाया,
घाटी का ये निपट झमेला,

प्यादों से फिर क्यों मिलती हैं मातें।
मन बहलाने वाली खाली बातें॥

सच को सच कहने में जैसे,
ठिठक रही भरपूर जवानी,
मानवता की रक्षा में क्यों?
सारा खून हो गया पानी,

घर-घर में चौसर की बिछी बिसातें।
मन बहलाने वाली खाली बातें॥

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