मेरा छोटा सा यह उपवन,
जिसमे रहता मधुमास सदा,
करता है ये कवि का वन्दन।
कवि आज तुम्हारा अभिनन्दन।
श्वासों में रूक-रूक कर चलता,
मन किन्तु आरती सा जलता,
उस मन को मेरा कोटि नमन।
कवि आज तुम्हारा अभिनन्दन।
कवि होता युग का निर्माता,
कवि की वाणी होती अनन्त,
कवि सर्जक 'सरस' स्नेहदाता,
कवि ही युग का है आदि अन्त,
होता अति मेरा प्रमुदित मन।
कवि आज तुम्हारा अभिनन्दन।
कामना यही सौ वर्ष जियें,
शारदे! शक्ति पीयूष पियें,
भावुक हो आया अपना मन।
कवि आज तुम्हारा अभिनन्दन।
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