पूरब से आई ऊषा की
अरुणायी लगी उभरने,
आया है नूतन वर्ष पुनः
फिर नयी चेतना भरने,
अति विषम विवादों का
उजियारा वर्ष गया,
गर्दिश का मारा वह
बेचारा वर्ष गया,
हिंसा अति भ्रष्टाचार
हार अति वृष्टि तपन,
विकराल अभावों का
वह मारा वर्ष गया,
दलबदलू पन की दीवानी
नेतागिरी का वर्ष गया,
गुण्डों, लफ्फाज, लफंगों की
दादागिरी का वर्ष गया,
महंगाई की भरमार किन्तु
लाचार रही सरकार,
बस प्याज तेल के भाव देख
मैं हारा पूरा वर्ष गया,
चिन्ता की रेखायें टूटीं
कुछ आशा लगी ठहरने,
आया है नूतन वर्ष पुनः
फिर नयी चेतना भरने।
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