Tuesday, January 29, 2008

उठो जवानों.....

काश्मीर की घाटी में फिर से छाया अंधियारा है।
पापी क्रूर, करिन्दों ने फिर अपने पाँव पसारा है।
दुश्मन ने आकर सीमा पर फिर हमको ललकारा है।
उठो जवानों फिर से भारत माँ ने तुम्हें पुकारा है।

एक बार फिर घाटी में ही
होती चीख पुकार सुनो।
फिर से गरज रही बारुदी
तोपों की हुंकार सुनो।
पाकिस्तानी पागलपन की
भी होती हद पार सुनो।
इसने घाटी में जीना फिर
कर डाला दुश्वार सुनो।
इसने ही फिर अमन-चैन के
रखवारों पर वार किया।
इसने घाटी के नन्दन वन
में फिर नर-संहार किया।
इसने सत्य अहिंसा वाले
मेरे ही घर लूटे हैं।
अब तो मर्यादा वाले भी
सारे संयम टूटे हैं।

इसने फिर से हमें नही मानवता को ललकारा है।
उठो जवानों फिर से भारत माँ ने अब न कभी ।

अब न कभी आगरा ताज
में महाभोज न्योते होंगे।
अब न कभी भी ताशकन्द
या शिमला समझौते होंगे।
समझौतों से घाटी की
रक्षा कर पाना मुश्किल है।
बिना युद्ध के अब शायद
कश्मीर बचाना मुश्किल है।
युद्ध हुआ इस बार पाक -
से तो परचम लहरायेगा।
युद्ध हुआ घाटी में तो
संसार चकित हो जायेगा।
युद्ध हुआ घाटी में तो
संसार चकित हो जायेगा।
युद्ध हुआ तो पाक यहीं
शिर से गारत हो जायेगा।
युद्ध हुआ तो निश्चित
एक महाभारत हो जायेगा।
युद्ध हुआ तो फिर
दोहराने वाला काम नही होगा।
बिना कराँची तक पहुँचे
फिर युद्ध विराम नही होगा।
युद्ध हुआ तो कुमकुम-
वाले हाथ बमों से खेलेंगे।
सत्य अहिंसा वाले भी
चलते वारों को झेलेंगे।
एक-एक इनके गुनाह
का भी जवाब हम दे लेंगे।
युद्ध हुआ तो अब गुलाम
कश्मीर को भी हम ले लेंगे।

अब भारत के महासमर में पांचजन्य हुंकारा है।
उठो जवानों फिर से भारत माँ ने तुम्हें पुकारा है।

माँ की रक्षा की खातिर
समझौतों की दरकार नहीं।
शीश भले ही कट जाये
पर झुकना स्वीकार नही।
देश हमारा गाँधी के यदि
पद चिन्हों वाला भी है।
बिस्मिल, चन्द्रशेखर, सुभाष
तो भगत सिंह वाला भी है।
इसकी रक्षा की खातिर
हर बैठा वीर जवान यहाँ
इसकी खातिर बच्चा-बच्चा
होता है कुर्बान यहाँ।
इसकी खातिर तो वीरों ने
भी हर हर बम बोला है।
इसकी खातिर तन ही क्या
मन रंगा बसन्ती चोला है।

कण-कण बोल रहा फिर जैसे इन्कलाब का नारा है।
उठो जवानों फिर से भारत माँ ने तुम्हें पुकारा है।

घाटी में अब तेरी कोई
दाल नही गल पायेगी।
हिन्दू मुस्लिम वाली कोई
चाल नही चल पायेगी।
हम अपने घर में ही लड़कर
आपस में रह लेते हैं।
अपनी राम कहानी सारी
आपस में कह लेते हैं।
भूँख में भी आधी-आधी
रोटी खाकर रह लेते हैं।
किन्तु किसी के एहसानों
की भीख नही हम लेते हैं।
बसे यहीं अजमेर यहीं
देवा या मथुरा काशी हैं।
पीर मोहम्मद हैं फकीर
घट-घट साधू सन्यासी हैं।
हिन्दी उर्दू अंग्रेजी-
मन चाहे भाषा-भाषी हैं।
देश खड़ा हो संकट में
तो पहले भारत वासी हैं।

हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई का सब मिलकर नारा है।
हम सब हैं भारत के सारा भारतवर्ष हमारा है।
खतरा तो अपने ही घर के जयचन्दों से सारा है।
उठो जवानों फिर से भारत माँ ने तुम्हें पुकारा है।

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