Saturday, January 19, 2008

वे बच्चे प्यारे लगते हैं

खुली वायु में रोज टहलते,
खूब दौड़ते खूब उछलते,
आँख, दाँत, मुँह धोकर अपना-
पाठ याद करने लगते हैं।

मल-मल कर जो रोज़ नहाते,
और समय पर खाना खाते,
कपड़े साफ पहन कर अपने-
रोज़ सुबह पढ़ने चलते हैं।

शाम समय जब घर वे आते,
तरह-तरह के खेल रचाते,
लड़ना-भिड़ना छोड़, सभी से-
हिल-मिल कर जो रहते हैं।

साहस से हर काम बनाते,
आलस सुस्ती दूर भगाते,
मीठी वाणी बोल-बोलकर-
सबको दिल से खुश करते हैं।

पढ़ने में मन खूब लगाते,
कभी काम से जी न चुराते,
धन्य देश वह जहाँ कि ऐसे-
होनहार बालक पलते हैं।

- डॉ० उमाशंकर शुक्ल 'उमेश'

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